Wednesday, June 10, 2020

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)


एक फकीरे को बहुत समय से एक बेशकीमती हीरे की तलाश थी और वो आज उसी हीरे की तलाश में सुनसान और निर्जन राहों पर निकल पड़ा था। वो उन सुनसान राहों पर चला ही जा रहा था कि बीच में एक नदी के प्रवाह ने उसको रोक लिया। अनजान रास्ते में मिलने वाली नदी को यूं ही अनजाने में पार करने से पहले फकीरे ने कुछ देर इंतजार किया कि क्या पता कोई मुसाफिर ईधर से गुजरे जिसे नदी में पानी का अंदाजा हो और वो भी उसके साथ नदी पार कर जाए। उसकी ये सोच भी बहुत जल्द फलीभूत हुई। वो नदी किनारे बैठा किसी मुसाफिर का इंतजार कर ही रहा था कि कई राहगीरों का एक समूह भी नदी तट पर आया जो नदी के दूसरी तरफ अपने काम पर जा रहा था। फकीरा भी उन लोगों के साथ नदी पार करने लगा और उन राहगीरों से बेशकीमती हीरे की जगह के बारे में पूछताछ करने लगा। पूछने पर उन राहगीरों ने केवल इतना ही बताया कि नदी पार करने के बाद आप उन कच्चे रास्ते पर चलेंगे तो दूर, थोड़ा दूर, थोड़ा और दूर निर्जन राह पर एक वटवृक्ष आएगा और उसके सामने ही पश्चिम की तरफ कटा पहाड़ है और कटा पहाड़ पार करते ही आपको वो हीरा मिल जाएगा।

नदी पार होते ही साथ साथ नदी पार करने वाले बाकी मुसाफिर दूसरी तरफ जाने के लिए मुड़ गए और वो मलंग फकीर दूसरी तरफ मुड़ गया। एक तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ दूसरी तरफ नदी का किनारा और बीच में वो कच्चा रास्ता और उस कच्चे रास्ते पर वो मलंग फकीरा धूल उड़ाता हुआ अपनी धुन में चला जा रहा था। दूर दूर तक न तो कोई उसके आगे चल रहा था और न ही दूर दूर तक कोई उसके पीछे आ रहा था। शांत और निर्जन वादियों में वो मलंग फकीरा भी अपनी फकीरी में अपने विचारों की सागर में डूबता-उतराता अकेला चला जा रहा था, चला जा रहा था और चला ही जा रहा था। नदी पार करते वक्त उन अनजान पथिकों ने उसे जो रास्ता बताया था वो अभी तक उसी का अनुसरण करते हुए चल रहा था फिर भी न जाने क्यों उस फकीरे के मन में आशंकाओं के बादल आ-जा रहे थे कि कहीं वो किसी गलत रास्ते पर तो नहीं आ गया है।

मन में ऐसे ही आशंकाओं के बादलों की घटा लेकर वो फकीरा निर्जन राह पर बढ़ता ही चला जा रहा था। रास्ते के एक तरफ जो पहाड़ थे वो तो अब भी साथ साथ चले जा रहे थे लेकिन दूसरी तरफ जो नदी चल रही थी उसने अपना रास्ता मोड़ लिया था और वो धीरे धीरे दूर होती चली जा रही थी। उधर नदी दूर होती जा रही थी और ईधर रास्ते के दोनों तरफ छोटी छोटी झाडि़यों ने अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया था जो कदम दर कदम आगे बढ़ने के साथ घनी होती जा रही थी और कुछ फासला तय करने के बाद वो छोटी छोटी झाडि़यां घनी झाडि़यों में बदल चुकी थी और फकीरा को ऐसा अहसास हो रहा था कि वो जंगल में बने किसी रास्ते पर चल रहा था।

अब तक जिस रास्ते के एक तरफ पहाड़ था और दूसरी नदी थी अब उसी रास्ते के दोनों तरफ घनी झाडि़यां थी। रास्ते के साथ साथ चल रहे पहाड़ तो पहले की ही तरह रास्ते के साथ साथ चले जा रहे थे लेकिन नदी का स्थान निर्जन और वीरान वादियों ने ले लिया था। ईधर फकीरा भी उन रास्तों का आनंद लेता हुए चला जा रहा था। कुछ दूर चलने के पश्चात फकीरे को नदी पार कर रहे पथिकों की बात याद आई कि बहुत आगे जाकर कटा पहाड़ और वटवृक्ष मिलेगा और ये याद आते ही फकीरे ने अपनी नजरें कटे पहाड़ और वटवृक्ष को खोजने के लिए दौड़ाना शुरू कर दिया और थोड़े ही प्रयास के बाद उसने वटवृक्ष को खोजने में सफलता प्राप्त कर भी लिया लेकिन अब भी उसकी नजरें कटे पहाड़ को खोज रही थी जो उसके सामने ही था पर वो उसे देख नहीं पा रहा था। और जिस हीरे की तलाश में वो आया था वो हीरा भी कटे पहाड़ के दूसरी तरफ ही था।


वटवृक्ष के पेड़ के तने सहारे कुछ देर आराम करने के पश्चात् फिर से फकीरे ने उसी कटे पहाड़ को खोजना आरंभ कर दिया जो उसके सामने ही था पर खोज नहीं पाया और आगे बढ़ता चला गया। कटे पहाड़ की खोज में बढ़ते हुए फकीरे को सब कुछ मिल रहा था पर उसे वो कटा पहाड़ नहीं मिल रहा था लेकिन उसकी नजरें कटे पहाड़ को खोजती रही। कटे पहाड़ की खोज में फकीरा अब तक बहुत आगे जंगलों की तरफ बढ़ चुका था जहां से पहाड़ भी भयानक शक्ल-सूरत वाले दिखने लगे थे। कटे पहाड़ का न मिलने और रास्ते की भयावहता बढ़ने से फकीरा परेशान भी हो रहा था लेकिन उसे तो कटे पहाड़ को खोजना था क्योंकि जब तक उसे वो कटा पहाड़ नहीं मिलता तब तक उसे वो हीरा भी नहीं मिलेगा जिसे खोजते खोजते वो यहां तक आया है। कभी उसके मन में खयाल आता कि लगता है वो किसी गलत रास्ते पर मुड़ गया, फिर दूसरे ही पल खयाल आता कि जब कोई और रास्ता आया ही नहीं तो गलत रास्ते पर मुड़ा कैसे, आदि आदि। और इन्हीं विचारों के सागर में गोते लगाता हुआ वो दूर, बहुत दूर निकल चुका था। ईधर फकीरे को अकेला देख कर भयानक शक्ल सूरत वाले पहाड़ भी उसे डराने का पूरा प्रयास कर रहे थे पर फकीरे की जिद के आगे आखिकर पहाड़ ने भी हारकर फकीरे को डराना छोड़ दिया। अब इन निर्जन वादियों में फकीरे के पास दो ही रास्ते थे या तो वो वापस लौटे या इन भयानक शक्ल-सूरत वाले पहाड़ की ओर कदम बढ़ाए।


इन दो बातों के द्वंद्व में उसने फैसला किया कि पहले इन पहाड़ों की ओर ही कदम बढ़ाया जाए और उसके कंधे पर चढ़कर कुछ ईधर उधर देखा जाए जिससे कटा पहाड़ मिल जाए, लेकिन वही ढाक के तीन नहीं छह पात वाली हुई। उसने अपने कदमों को लगभग घसीटते हुए इन भयानक शक्ल-सूरत वाले पहाड़ों पर कुछ ऊंचाई तक ले गया और कुछ न पाकर निराश होकर फिर से कदमों के साथ खुद को घसीटते हुए नीचे ले आया और जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते पर वापस चल पड़ा।

अभी वो कुछ दूर ही वापस आया था कि उसे ध्यान आया कि उन पथिकों ने तो कहा था कि वटवृक्ष के पास खड़े होकर सीधे पश्चिम दिशा की ओर देखने पर आपको कटा पहाड़ मिलेगा और वो अभी इस समय जहां वो खड़ा है वो वटवृक्ष से सीधा पश्चिम दिशा की ओर ही है। अब मन में ये खयाल आते ही उसने पश्चिम की ओर ही देखना शुरू किया तो उसे ऐसा लगा कि जहां पर वो खड़ा है वहां से 100-200 मीटर की दूरी पर पहाड़ों की ऊंचाई बहुत कम है। ये देखकर उसे पहले तो लगा कि ये कटा पहाड़ नहीं हो सकता लेकिन फिर भी उसके मन आधे मन से ही सही वहां तक जाकर देखने की लालसा जगी और और वो उस तरफ बढ़ चला।

घनी झाडि़यों के बीच से ऊबड़-खाबड़-नुकीले पत्थरों पर से गुजरते हुए उसने उस दूरी को तय किया और खुद को पहाड़ के कम ऊंचाई वाले भाग पर पाया। वहां पहुंचते ही उसने देखा कि जिस हीरे की तलाश में वो यहां तक आया था वो हीरा भी शांत और निःशब्द बैठा पहाड़ के दूसरी तरफ उसका ही इंतजार कर रहा था। वो फकीरा यहां तक आ तो गया लेकिन वो सोच यही रहा था कि जिस कटे पहाड़ को खोजते हुए वो आगे बढ़ रहा था दरअसल वो कटा पहाड़ था ही नहीं, बल्कि पहाड़ ही वहां पर कम ऊंचाई के थे। यदि उन पथिकों ने उसे कटे पहाड़ के बदले ये बता दिया होता कि कम ऊंचाई के पहाड़ हैं तो वो शायद भटक कर ईधर-उधर नहीं जाता। पर ईधर-उधर भटकने के बाद भी फकीरा खुश था कि जिस हीरे की तलाश में वो यहां तक आया था वो उसे मिल चुका था और वो इस बात से बहुत खुश था, बहुत खुश था और इतना खुश था कि वो बहुत खुश था। आखिर खुश हो भी क्यों नहीं क्योंकि उसे उसका हीरा मिल चुका था।

(फोटो में दूर ताड़ के पेड़ के बाद वटवृक्ष और उससे थोड़ा आगे कटा पहाड़ दृश्यमान है।)


✍️ अभ्यानन्द सिन्हा।

(फोटो में दूर ताड़ के पेड़ के बाद वटवृक्ष और उससे थोड़ा आगे कटा पहाड़ दृश्यमान है।)

5 comments:

  1. आखिर में फकीरे को वट-वृक्ष के साथ कटे पहाड़ यानी कम ऊँचाई वाले पहाड़ मिल ही गया...

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  2. बहुत सुंदर कहानी । हैप्पी एन्डिंग

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