एक यात्रा की कुछ यादें (Some memories of a journey)
शाम का समय था और दिन भर के थके-हारे सूरज बाबा अपने घर में आराम करने के लिए जा रहे थे और ईधर लौह पथ गामिनी भी दो इंच चौड़े लौह पथ पर बिना धूल उड़ाए हरर-हरर घरर-घरर की आवाज किए हुए चली जा रही थी। ट्रेन के बाहर सूरज देव की सुनहरी आभा छलक रही थी तो अंदर सफेद रोशनी बिखर रही था। कितना अच्छा संयोग था बाहर आभा मैडम और अंदर रौशनी मैडम माहौल को खुशनुमा बनाए हुए थे। शम्भू दयाल जी इस ट्रेन से वहां तक जा रहे थे जहां तक ट्रेन जा रही थी और संयोग से उनके आॅफिस के ही एक सहकर्मी भी इसी ट्रेन से जा रहे थे और संयोग ऐसा कि वो भी उसी कोच में थे। बड़ी मुश्किल से शम्भू दयाल और उनके साथी ने मिलकर सीटों की अदला-बदली किया और एक जगह विराजमान हुए। ट्रेन के बाहर विराजित आभा मैडम भी अपने घर चली गईं और ट्रेन के अंदर विराजित रौशनी मैडम जी भी अपने घर जाने लगे थे और शम्भू दयाल जी नींद की शरण में जाने की तैयारी करने लगे थे।
अब संयोग कहें या प्रयोग कहें। ऐसा हुआ कि शम्भू जी ने जब सीटों की अदला-बदली किया था तो उन्होंने उनकी जहां सीट थी अपना नीचे वाला सीट देकर यहां भी नीचे वाला ही सीट प्राप्त किए थे, पर जब सोने का समय आया तो एक अंकल जी ने शम्भू जी को कहा कि आप मेरे सीट पर ऊपर सो जाइए और हम यहां नीचे सो जाएंगे। ऐसी अनुशंसा करने वाले व्यक्ति उम्र में शम्भू जी कई वर्ष बड़े थे तो शम्भू जी ने भी बात मान लिया कि सोना ही तो है और नीचे हो या ऊपर क्या फर्क पड़ता है और इसके बाद शम्भू जी हनुमान जी तरह छलांग लगाकर सीधा ऊपर वाली सीट पर पहुंचने की जुगत लगा बैठे। जुगत भी ठीक ही लग गई थी पर होनी को कौन टाल सकता है और शम्भू जी भी यहां होने वाले होनी को नहीं टाल पाए।
शम्भू जी ने नीचे से ऊपर वाली सीट पर पहुंचने के लिए छलांग लगाने के लिए जो दूरी का अंदाज लगाया था उसमें लगता है कुछ सेंटीमीटर की चूक हो गई और शम्भू जी ऊपर वाली सीट पर पहुंचने के बजाय सीट की सीमारेखा के पास जाकर बैरम लिफाफे की तरह वापस हो लिए और धड़ाम से उस अंकल जी के ऊपर ही गिर पड़े। अब शम्भू जी को गिरता देख वो अंकल जी भड़क उठे और कहने लगे कि बड़े बेशरम आदमी हो यार। गिरने का तो गिर गए कोई बात नहीं पर कह कर नहीं गिर सकते थे क्या?
शम्भू जी तो बेचारे चोट से इतने परेशान हुए कि अंकल जी को जवाब देना तो छोडि़ए, साॅरी भी कहने की स्थिति में नहीं थे। अभी शम्भू जी किसी तरह उठ कर खड़े ही हुए थे कि अंकल जी फिर बरस पड़े कि अगर इस तरह गिरना तो आगे से ध्यान रखिएगा। अब इस स्थिति में इस समय मोर्चा शम्भू दयाल के साथी ने संभाला और कहा कि अंकल जी ये तो गिर गए थे, अगर कूदते तो अवश्य बताकर कूदते, पर गिरने के पहले इनको भी नहीं पता था कि ये गिरने वाले हैं तो कैसे आपको बताते कि हम गिरने वाले हैं। अब अंकल जी बोल पड़े कि फिर भी गिरने से पहले ध्यान तो रखना ही चाहिए कि गिर रहे हैं तो कहां गिर रहे हैं। इन बातों के बीच अब तक शम्भू जी भी अपनी सामान्य स्थिति में आ चुके थे। अंकल जी अभी कुछ बोलना के लिए मुंह खोलना ही चाह रहे थे कि शम्भू जी ने कहा, साॅरी अंकल जी! गलती हो गई, पर आगे से गिरने से पहले बताकर ही गिरा करेंगे।
इतना कहने के बाद इस बार शम्भू जी ने बिल्कुल सही माप-जोख के बाद हिसाब लगाकर छलांग लगाया और ऊपर वाले सीट पर पहुंच गए और ऊपर से ही कहा कि अंकल जी जरा संभलिएगा हम गिरने वाले हैं, और अब ये मत कहिएगा कि हमने बताया नहीं। इस पर अंकल जी आग बबूला हो गए और बोले कि भाई आप अपनी सीट पर आ जाइए, मुझे आपकी नीचे वाली सीट नहीं चाहिए। मेरे लिए मेरा ऊपर वाला ही सीट ठीक रहेगा वरना आप पूरे रास्ते यही कहेंगे कि अंकल जी मैं गिरने वाला हूं। और उसके बाद शंभू जी ने उन अंकल जी को कितना भी कहा पर वो नहीं माने और अपने ऊपर वाले सीट पर जाकर ही दम लिया।
Beautiful story.
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