वो बूढ़ा पेड़ (Wo budha ped)
कोई गतिअवरोधक नहीं है ...
वो तो देता है ...
हर आते जाते लोगों को ठंडी ठंडी छांव ...
कहता रहता है ...
ओ जाते हुए मुसाफिर ...
जरा रुकना और सुस्ता लेना ...
मेरी ठंडी ठंडी छांव में ...
रुक लेना कुछ पल मेरी पनाहों में ...
फिर चले जाना अपनी मंजिल की ओर ...
और रखना मेरी एक बात हमेशा याद ...
लौटते हुए भी ...
और तब भी चाहे तो कुछ पल बैठकर ...
कर लेना कुछ बातें हमसे ...
कुछ अपनी सुना देना ...
कुछ मेरी सुन लेना ...
और फिर चल पड़ना ...
अपने रास्ते की ओर ...
और ...
मैं बस निहारता रहूंगा तुमको ...
जाते हुए ...
एक बार फिर तुम्हारे लौटने के इंतजार में ...
पर मुसाफिर कहां लौट कर आता है ...
और तुम भी फिर लौट कर नहीं आओगे ...
और ...
मिट जाएंगे तुम्हारे कदमों के निशान भी ...
तेरे जाने के बाद ...
क्योंकि ...
तेरे बाद उसी पथ पर आएगा ...
कोई और मुसाफिर ...
जो तेरे कदमों के निशान पर ...
अपने कदमों के निशान छोड़ जाएगा।

फोटो: तिरुमला पर्वत (तिरुपति)
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