मैं जब भी अकेला होता हूं (When I am alone)
तो खुद को जंगल में पाता हूं!
यूं ही किसी पेड़ के नीचे
थोड़ा अनमना सा बैठ जाता हूं!
यूं ही जरा सी सरसराहट पर
अनमना सा निहारने लग जाता हूं!
कभी देखता हूं दूर पहाड़ों को
कभी आसमान को ताकता हूं!
कभी देखता जलधारा को
कभी बादलों से बतियाता हूं!
इन हरी वादियों को देखकर
मैं हरियाली में खो जाता हूं!
फोटो : मध्यमहेश्वर (द्वितीय केदार), उत्तराखंड के रास्ते

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