मेरे जाने के बाद (Mere Jaane ke Baad)
दिन भर की गर्म हवा
आने लगे हैं वो लोग
जो गए थे खेतों की ओर
अपने बैलों के साथ।
मैं भी चला जाऊंगा
कल सुबह
इस गांव से
फिर एक बार
मां की ममता से दूर।
मां बांध देगी
सुबह सुबह
ममता-भरा कुछ पाथेय
रख देगी पानी-भरा
एक लोटा दरवाजे पर
मुझे विदाई देते हुए।
गंगोत्री-यमुनोत्री
हो जाएगी
मेरी मां की आंखें।
निरीह गौ-सी
केवल निहारेगी मुझे
समझ नहीं पाएगी वह
ममता का स्वाद
मेरे जाने के बाद।
सुबह सुबह
निकल पड़ेंगे पापा
अपना वही पुराना
गमछा लेकर
गांव के बाहर की ओर
जहां रहती है खड़ी सभी बसें
शहर जाने के लिए।
पहुंचते ही रखेंगे
अपना गमछा
किसी खाली पड़ी सीट पर
और ढलक जाएंगे
आंसू के कुछ बूंद
उनके चेहरे पर।
जा रहा है मेरा बड़का आज वापस
पता नहीं फिर कब आएगा
और रुआंसी हो जाएंगी उनकी आंखें
कैसे समझाऊं उनको कि पापा
हम भी रोते हैं आपके बगैर
ठीक उसी तरह
जैसे आज बह रहे हैं आपके आंसू।

मार्मिक। यह व्यथा है हर उस व्यक्ति की है जो अपने गाँव छोड़कर बाहर काम की तलाश में निकलता है।
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