Friday, March 21, 2025

पैदल रास्ते की खूबसूरती (Beauty of Trekking)

पैदल रास्ते की खूबसूरती (Beauty of Trekking)


नीले-सुनहरे आसमान में लालिमा लिए सूर्य देव ...... लहराती-बलखाती बहती हुई नदी के साथ-साथ ...... बर्फ से ढंके पहाड़ की तलहटी में ...... छोटी-बड़ी झीलें और ताल ...... महकती हुई वादियां ...... खामोश वातावरण ...... कुछ-कुछ जंगली रास्ते ...... गिरे हुए पत्तों पर पड़ते पैर ...... पत्तों में पैर का धंस जाना ...... टहनियों के टूटे से एक अनाजाना डर ...... गगनचुंबी पेड़ों पर सरसराती हवाएं ...... पक्षियों का पेड़ों के ऊपर से गुजरना ...... अपने पंखों के फडफड़ाहट के साथ पेड़ों की ऊंची डालियों पर रुक जाना ...... एक काल्पनिक और अनदेखा रोमांच ...... जंगली पौधों व जड़ी बूटियों की तेज सुंगंध ...... झींगुरों का गायन ...... पक्षियों का कलरव ...... थोड़ी सी आवाज पर दिल की धड़कन का तेज हो जाना ...... कुछ अनजान चीजों को खोजती नजरें ...... ऊबड़-खाबड़ और फिसलन भरी राहें ...... पेड़ के पत्तों से छनकर आती सूर्यदेव की किरणें ...... घनी झाडियों से निकल सांपों का रास्ते से गुजर जाना ...... रास्ते से हटकर बहती हुई नदी का मधुर संगीत वाली ध्वनि ...... झरनों में बहते जल के बूंदों से शरीर के साथ-साथ मन का भींग जाना ...... पल-पल बदलता मौसम ...... नीले आकाश में सफेद बादलों का बसेरा ...... हरी-भरी वादियां ...... और इनके साथ न जाने क्या क्या। यदि ये सब कुछ आप देखना और महसूस करना चाहते हैं तो निकल पडि़ए अपना झोला उठाकर खूबसूरत वादियों में एक खूबसूरत सफर और वापसी में उस खूबसूरत सफर की खूबसूरत यादें लेकर घर आ जाइए।

फोटो : बूढ़ामध्यमहेश्वर ताल और साथ में चौखम्भा और उसका प्रतिबिम्ब

Sunday, March 9, 2025

मेरे जाने के बाद (Mere Jaane ke Baad)

मेरे जाने के बाद (Mere Jaane ke Baad)


ठंडी होने लगी है अब
दिन भर की गर्म हवा
आने लगे हैं वो लोग
जो गए थे खेतों की ओर
अपने बैलों के साथ।
मैं भी चला जाऊंगा
कल सुबह
इस गांव से
फिर एक बार
मां की ममता से दूर।
मां बांध देगी
सुबह सुबह
ममता-भरा कुछ पाथेय
रास्ते में खाने के लिए।

Sunday, March 2, 2025

थका मन (Thaka Man)

थका मन (Thaka Man)

कभी-कभी
थक जाता है
मन भी तन के साथ,
तब बस निढाल हो,
एक कोने में,
किसी से बिना कुछ कहे,
चला जाता है,
आँखें बंद किए
शून्य की ओर...!

फोटो : सनियारा बुगियाल, रांसी

Monday, February 24, 2025

केदारनाथ : एक सपना (Kedarnath: A Dream)

केदारनाथ : एक सपना (Kedarnath: A Dream)



एक सपना ... फिर ...हां ... ना ... हां ... बाइक ... दुपहरी ... सड़क ... इंतजार ... मिलन ... रास्ता ... ट्रैफिक की मारा-मारी ... एक और मिलन ... स्वागत का दौर ... फिर राहें ... वो सुनहरी शाम ... नागिन की चाल सी टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें ... यादगार रात ... बरसात ... इंतजार ... फिर मिलन ... आगे का सफर ... ऊंची-नीची सर्पीली सड़कें ... अनजान मुसाफिर ... पहली बाइकिंग ... दिल की धड़कन का बढ़ना ... बस अब और नहीं ... लाओ बाइक मुझे दो ... तुम जाओ गाड़ी में ... सुनसान जंगल ... ठंडी रात ... थोड़ी नींद ... फिर आगे का सफर ... लो अब थोड़ा फिर से हाथ आजमाओ बाइक पर ... एक अनाड़ी ... चल पड़ा धीरे धीरे ... कुछ डर ... कुछ आशंका ... कुछ घबराहट ... आखिर आ ही गई मंजिल ... फिर आए साथी ... वो भीड़ ... समय सीमा खत्म ... प्लीज जाने दीजिए ... नहीं अब नहीं ... प्लीज प्लीज प्लीज ... थोड़ा सच ... थोड़ा झूठ ... थोड़ा जिद ... थोड़ी श्रद्धा तो थोड़ी भक्ति ... मेरी पत्नी जा चुकी ... मेरी बहन जा चुकी ... मेरी माता जी आगे जा चुकी ... या तो उनको वापस लाओ या मुझे जाने दो ... ठीक है जाओ ... पर संभलकर ... बढ़ चला कारवां ... कुछ कदम और तेज बरसात ... कुछ ईधर-कुछ उधर ... कुछ तितर-कुछ बितर ... साथी गए बिछड़ ... कुछ आगे ... कुछ पीछे ... बस अब और नहीं ... बस थोड़ी दूर ... हां-ना हां-ना ... और फिर सबका मिलना ... फिर कदम-कदम चलना ... आधी रात का गुजर जाना ... फिर टेंट में शरण ... अंधेरे मुंह फिर अगला सफर ... कदम-कदम बढ़ाते-बढ़ाते ... वो पर्वत ... वो घाटी ... वो नदी ... वो बर्फ ... वो ठंडी हवा ... और बाबा का दर ... एक नया दिन ... एक नई ऊर्जा ... हर हर महादेव ... वो स्वर्ग का नजारा ... वो भीड़ के दर्शन ... वीआईपी गेट ... बाबा के आगे नतमस्तक ... कुछ महीने पहले दिन के समय में अचानक देखे गए एक सपने का पूरा होना।

केदारनाथ की मधुर यादें (29 अप्रैल 2018)

Sunday, February 23, 2025

जंगल (Woods)

जंगल (Woods)


जंगल भी बहुत अजीब होता है न ... तरह तरह के छोटे बड़े पेड़ ... घनी झाडि़यां ... ऊबड-खाबड़ रास्ते ... पेड़ों पर हरियाली ... छांव का बसेरा ... पेड़ों से छन कर आती सूरज की किरणें ... शांति और नीरवता ... और उसे तोड़ती हुई झिंगुरों की मधुर ध्वनि ... हर कदम पर बिखरे दिलकश नजारे ... चलते हुए कदमों में लिपटते पत्ते और बेलें ... थोड़ा सा भय मिश्रित रोमांच ... उसके ऊपर शाम के बाद घिरता अंधेरा ... दूर दूर तक कोई इंसान नहीं ... हाथ में कैमरा लिए खूबसूरत दृश्यों की तलाश ... किसी जानवर को तलाशती आंखें ... और थोड़ी सी सरसराहट होते ही चौंकन्ने हो जाना ... ईधर-उधर देखना ... कुछ न दिख पाने पर मन में एक उदासी के साथ राहत की सांस लेना ... कुछ कदम चलना और फिर वही प्रक्रिया दुहराना ... धीरे धीरे अंधेरे का गहराता जाना ... रास्ते का भी न दिखाई देना ... टाॅर्च की मद्धिम रोशनी भी रास्ता चलने के लिए नाकाफी ... सब कुछ कितना अजीब लगता है न? ये कोई सपना नहीं है, ये वो पल है जब हमें मध्यमहेश्वर से लौटते हुए गोंडार में ही शाम हो गई थी और अंधरे में ही केवल हम दो लोग उस जंगल को पार कर रहे थे तो मन में ऐसे ही कुछ भाव आ-जा रहे थे।

फोटो : मध्यमहेश्वर जाते हुए रांसी से गोंडार के बीच,

Thursday, February 20, 2025

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

—हम मिलेंगे कभी-कहीं!
—आखिर कब-कहां?
—वहीं कहीं दूर जहां मिलते हैं नदिया और आसमान एक दूसरे से और मिलकर एक हो जाते हैं या फिर मिलेंगे वहीं जहां से नदिया निकलती है या फिर वहीं जहां जाकर नदिया जाकर खत्म हो जाती है।

शायद यही पंक्तियां होंगी जिसने लोगों को यहां से वहां, वहां से कहीं और घूमने के लिए विवश किया होगा। फिर यही सोचकर लोगों ने अलग अलग दिशाओं में चलना शुरू किया होगा। कुछ लोग पूरब की ओर निकले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर रोज आता कहां से है और बस चलते ही चले गए होंगे फिर कभी न लौटने के लिए। वैसे ही कुछ लोग पश्चिम की ओर चले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर शाम को जाता कहां है, कहां जाकर वो रात में रुकता है और फिर पूरब की तरफ जाने वाले लोगों की तरह वो भी पश्चिम की ओर चले हेांगे बस चलते रहने के लिए।

Wednesday, February 19, 2025

पागल मन (Pagal Man)

पागल मन (Pagal Man)


कहीं जाने का विचार आते ही सबसे पहले मन में यही आता है कि कहां जाऊं, किधर जाऊं, किस साधन से जाऊं, किसके साथ जाऊं और भी न जाने क्या क्या संशय मन में उमड़ने लगते हैं।
इन सब संशयों से पार पाकर केवल खुद को साथ लेकर निकल पड़ना ही घुमक्कड़ी, यायावरी या मुसाफिरी है, तो एक बार निकल पडि़ए खुद के साथ, खुद की खोज में खुद से मिलने के लिए इन हसीन और मनभावन वादियों में।
रास्ते में मिलने वाले मोड़ों पर कुछ समय गुजारिए, किसी झरने के पास बैठकर झरने में पैर डालकर बैठे रहिए और बहते हुए पानी को देखते रहिए, हरे-हरे पेड़ों के नीचे बैठकर उससे छनकर आती हुई धूप को निहारा कीजिए और किसी सुनसान वीराने में पक्षियों के चहचहाने की आवाज को महसूस कीजिए।

Wednesday, February 12, 2025

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)


भारत भूमि तीर्थों से भरी पड़ी है। ये तीर्थ स्थान हमारे देश के हृदय स्थल कहे जा सकते हैं, जहां चहुं ओर से लोग आते हैं और फिर लौट जाते हैं। हमारे समाज में तीर्थों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति के मन में एक महत्वाकांक्षा और लालसा सदैव बनी रहती है कि अपने जीवन-काल में वह किसी-न-किसी पवित्र देव-स्थल यानी तीर्थ स्थान के दर्शन अवश्य कर ले। कोई भी तीर्थ स्थान एक परम पवित्र स्थान होता है।

Monday, February 10, 2025

अधूरा प्यार (Adhoora Pyar)

अधूरा प्यार (Adhoora Pyar)


मिलने की बात तो बस एक बहाना था,
हकीकत तो ये थी तुम्हें दूर जाना था।
तुम चले गए और हम बस अकेले रह गए,
क्योंकि मुझे प्यार में वफा जो निभाना था।
मेरे शब्दों को पढ़ने वाले पूछते हैं कभी-कभी,
इतनी गहराई से लिखते हो क्या कोई अफसाना था।
तुम रहो या न रहो अब, मैं आंसू नहीं बहाऊंगा,
बहुत रुला चुके मुझे, तुम्हें जितना रुलाना था।
हम प्यार में थोड़े बेपरवाह क्या हो गए,
पर तेरे होठों पर मेरा नाम नहीं आना था।
दुनिया में सब करते हैं प्यार-मोहब्बत,
पर मुझे तो तुम पर खुद को लुटाना था।
उस दिन न तो तुम रूठी और न मैं रूठा था,
बस मंजिल पर आकर साथ अपना छूटा था।

✍️ अभ्यानन्द सिन्हा (10-02-2018)

Sunday, February 9, 2025

चलो कहीं चलते हैं... (Chalo kahin chalte hain)

 चलो कहीं चलते हैं... (Chalo kahin chalte hain)



‘‘जा रहे हैं कहीं,
पर कहां पता नहीं!’’

अक्सर ही हम कहते हैं कि ‘‘जा रहे हैं या जाकर आते हैं’’ पर हकीकत यही है कि ‘‘हम कहीं नहीं जाते’’। ‘‘कहीं भी जाने वाला इंसान कहीं नहीं जाता क्योंकि कहीं जाने के लिए कहीं से जाना पड़ता है’’ और ‘‘जहां से जाना पड़ता है वो जगह हमें कहीं जाने नहीं देती’’ क्योंकि ‘‘कहीं भी जाने वाला इंसान अकेला नहीं जाता’’। कहीं दूसरे शहर में एकदम से अकेले जाने पर भी नहीं और तब भी नहीं जब वह अपने परिवार, पति-पत्नी, बच्चे, माता-पिता और भाई-बहनों के भौतिक साथ के बिना अकेला ही निकलता है। कोई भी व्यक्ति अपनी जड़ों में जकड़े पांवों के थमने के बगैर, अपने दिलो-दिमाग में खालीपन के अहसास के बगैर अपनी दुनिया को छोड़ नहीं पाता क्योंकि हमारे साथ तमाम ताने-बाने सदा ही हमारी यादों में होते हैं। अपना इतिहास, अपनी संस्कृति में डूबा आत्मबोध सदा साथ होता है।

खूबसूरत रास्ते (Beautiful Ways)

खूबसूरत रास्ते (Beautiful Ways)


उतरे जो जिन्दगी तेरी गहराइयों में, महफिल में रह के भी रहे सदा तनहाइयों में।
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें, प्यार ढूढ़ते रहे हम सदा तेरी परछाईयों मे।।

रास्ते ऐसे तो मंजिल की फिक्र कौन करता है। जब इतने सुंदर नजारे रास्ते में दिखते हों तो मंजिल पर पहुंचने की जल्दी किसे होती है, बस देखते जाओ और चलते जाओ। ऐसे रास्ते जितने लम्बे होते हैं उतने ही मन को आनंदित करते हैं। ऐस रास्ते पर चलते हुए जब हम अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं तो एक आह सी निकलती है कि ये कहां आ गए हम यूं ही कदम कदम चलते चलते।

Sunday, February 2, 2025

झरने और नदी की यात्रा (Journey of Waterfall and River)

झरने और नदी की यात्रा (Journey of Waterfall and River)


यात्रा-कथा कहिए, यात्रा-विवरण कहिए या यात्रा-वृत्तांत कहिए या आपके मन में जो आए वो कह लीजिए। इसकी रचना के लिए न तो कोई निर्दिष्ट पद्धति है न ही कोई निश्चित सिद्धांत। पैरों के साथ-साथ मन के अनुसार ही इसकी पटकथा चलती है और उस पर यदि शब्दों ने सुर-ताल मिला दिया तो बस फिर कहना ही क्या हो गया काम आसान और इसमें से यदि किसी एक ने भी थोड़ा सा साथ नहीं दिया तो फिर लाख प्रयासों के बाद भी लिखना संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी यात्रा-कथा लेखन भी हिमालयी क्षेत्र के पर्वतारोहन (ट्रेकिंग) के जैसा ही प्रतीत होने लगता है। कभी तो एकदम सीधा, सरल, सपाट, तो कभी ढलान तो कभी चढ़ाई।

Tuesday, March 1, 2022

नालन्दा बार-बार देखो (Nalanda)

नालन्दा बार-बार देखो (Nalanda)



बिहार का अभिमान देखो।
राजगीर की शान देखो।
विपुलगिरि पहाड़ देखो।
रत्नागिरि की आन देखो।
उदयगिरि की ठाट देखो।
स्वर्णगिरि का अट्टहास देखो।
वैभारगिरि का मान देखो।
सप्तपर्णी का आन देखो।
स्वर्ण भंडार गुफा देखो।
ब्रह्मकुंड का ताप देखो।
सप्तधारा का धार देखो।
वेणुवन की शीतलता देखो।
कलंदक निवाप देखो।

Wednesday, October 13, 2021

मेट्रो की सवारी (Metro ki Sawari)

मेट्रो की सवारी (Metro ki Sawari)




मेट्रो ट्रेन के डिब्बे में
मिल जाती है यूं ही
अजब गजब सी जिंदगी।
दरवाजे से सटे
कोने वाली सीट पर
नजरें गड़ाए हुए
मोबाइल पर
तन कर बैठी है तनु।
घुटने तक की पहनी जींस
वहीं बगल में खड़ी है मनु।
और वहीं बगल में खड़ा वनु
कर रहा है सीट के
खाली होने का इंतजार।

Tuesday, July 6, 2021

कहानी तस्वीरों की (Story of pictures)

कहानी तस्वीरों की (Story of pictures)



जैसे साहित्य समाज का दर्पण होता है वैसे ही मुझे लगता है कि फोटो भी यात्राओं का दर्पण होते हैं। और वे केवल फोटो केवल हमारी यात्राओं की यादें ही नहीं होती वरन वो हमारे लिए बहुत कुछ होते हैं, जैसे सखा, मित्र, भाई, सहेली, आदि।

वो हमारे साथ चलते हैं, हमारे साथ रहते हैं, हमसे बातें करते हैं और इतनी बातें करते हैं कि बातें कभी खत्म ही नहीं हो पाती है। फोटुओं से बातें करते हुए हम फिर से उसी सफर में पहुंच जाते हैं जहां से हम उन फोटुओं को पकड़ पकड़ के लाते हैं।

Monday, July 5, 2021

एक यात्रा की कुछ यादें (Some memories of a journey)

एक यात्रा की कुछ यादें (Some memories of a journey)




शाम का समय था और दिन भर के थके-हारे सूरज बाबा अपने घर में आराम करने के लिए जा रहे थे और ईधर लौह पथ गामिनी भी दो इंच चौड़े लौह पथ पर बिना धूल उड़ाए हरर-हरर घरर-घरर की आवाज किए हुए चली जा रही थी। ट्रेन के बाहर सूरज देव की सुनहरी आभा छलक रही थी तो अंदर सफेद रोशनी बिखर रही था। कितना अच्छा संयोग था बाहर आभा मैडम और अंदर रौशनी मैडम माहौल को खुशनुमा बनाए हुए थे। शम्भू दयाल जी इस ट्रेन से वहां तक जा रहे थे जहां तक ट्रेन जा रही थी और संयोग से उनके आॅफिस के ही एक सहकर्मी भी इसी ट्रेन से जा रहे थे और संयोग ऐसा कि वो भी उसी कोच में थे। बड़ी मुश्किल से शम्भू दयाल और उनके साथी ने मिलकर सीटों की अदला-बदली किया और एक जगह विराजमान हुए। ट्रेन के बाहर विराजित आभा मैडम भी अपने घर चली गईं और ट्रेन के अंदर विराजित रौशनी मैडम जी भी अपने घर जाने लगे थे और शम्भू दयाल जी नींद की शरण में जाने की तैयारी करने लगे थे।

Sunday, July 4, 2021

मैं और मेरी कहानी (Main aur Meri Kahani)

मैं और मेरी कहानी (Main aur Meri Kahani)



मैंने अपने जीवन के पहले कुछ साल और शायद उसके बाद के कुछ साल और फिर उसके बाद के कुछ और साल एक गूंगे-बहरे आदमी की तरह बिताया। बचपन से ही पुराने ढंग के पोशाक पहनना पसंद है जैसे कोई पाषाण काल का आदमी हूं और जैसा कि मैं सोचता हूं मैं उसमें बुरा नहीं लगता हूं। .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... मैं किसी गुप्त आग में जलना, किसी अन-अनुमेय कुएं की गहराई में डूबना तो चाहता था लेकिन उस आग में अपने को फेंकने या कुएं में कूदने का साहस मुझमें नहीं था और न ही कोई ऐसा नहीं मिला जो मुझे उस आग में धकेल दे इसलिए मैं बिना उस ओर ताके किनारे पर ही चलता।

Wednesday, June 30, 2021

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)



(22 मार्च 2019
): मेरे प्यारे बिहार आज तुमने अपने जीवन का 107 साल पूरा कर लिया और 108वें वर्ष में प्रवेश करने की बहुत सारी बधाइयां शुभकामनाएं तुमको।

तुमने 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर अपना एक अलग घर बसाया और समय के थपेड़ों को सहते हुए एक-एक वर्ष करते करते आज तुमने अपने जीवन का 107 वर्ष पूरा कर लिया। इन 107 वर्षों में तुमने क्या-क्या नहीं देखा। एक इंसान की तरह तुम्हें हर समय प्रताडि़त किया गया, तुम्हारी मेहनतकशी को लानते-तोहमतें दी गई, हर पल तुमको धराशायी करने का प्रयास चलता रहा फिर भी तुम उसी शान से खड़े रहे जिस शान से तुम सदियों और सहस्रों साल पहले खड़े थे।

Tuesday, June 29, 2021

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा (Chau Chau Kang Nilda Mountain)

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा
(Chau Chau Kang Nilda Mountain)





अनिल दीक्षित जी ने एक पर्वत की चोटी के बारे में कुछ पूछा तो हम उस पर्वत के बारे में इंटरनेट पर खोजने लगे जो उस पहाड़ से संबंधित वहां की एक लोककथा हमें मिली, जो कि अंग्रेजी में था जो हमें बहुत अच्छा लगा तो हमने उसे हिन्दी में अनुवाद किया और अनिल दीक्षित जी के उसी फोटो के साथ हम उसे यहां पोस्ट कर रहे हैं।

चाउ चाउ कांग कांग निलदा स्पीति में एक प्रसिद्ध पर्वत है। चै चै का अर्थ है छोटी लड़की, परी या राजकुमारी। कांग का मतलब बर्फ से ढका पहाड़ होता है। नी यानी नीमा जिसका अर्थ सूर्य है। दा यानी दाव का अर्थ चंद्रमा है। यानी कि यह एक परी पर्वत है जिस पर जिस पर सूर्य और चंद्रमा चमकते हैं। चाउ चाउ लंगजा मठ से बहुत सुंदर दिखाई देता है।

Monday, June 28, 2021

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)



बात पिछले साल की है। जेठ के तपते झुलसते महीने में एक दिन शाम के समय हम घर से निकलकर खेतों की तरफ जाकर एक छोटे से पुलिया पर बैठे हुए थे। गोधूलि बेला के इस समय में खेत में चरने गई गाय-भैंसे हरी और सूखी घास चरकर वापस अपने घर को आ रहे थे और उनके पीछे उनका मालिक भी कंधे पर लाठी और गमछा लिए हुए हो-हो, है-है, हे-हे करते हुए आ चले आ रहे थे और मैं ध्यानमग्न होकर उन दृश्यों को निहारे जा रहा था। उधर सूर्य देव भी दिन पर अपनी चमक बिखेरने के बाद अपनी बची हुई लालिमा को लेकर वापस अपने घर को जा रहे थे और उनकी इस लालिमा से चारों दिशाएं केसरिया रंग में रंग चुकी थी और हम इसी केसरिया रंगों में डूबे हुए कई साल पीछे के दृश्यों में तैर रहे थे।

Sunday, June 27, 2021

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

पहली नजर : अभ्यानन्द सिन्हा


एक मधुर मिलन की सुनहरी यादें 
14 फरवरी 2020, दोपहर 2.30 बजे

स्थान बिहार शरीफ का रामचन्द्रपुर बस स्टैंड पर : पटना, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, नवादा, गया, राजगीर, हिलसा, रांची, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़, गढ़वा, टाटा, चाईबासा, कलकत्ता, पूर्णिया, सहरसा, भागलपुर, मुंगेर, जमुई, पकरीबरावां, जहानाबाद, आदि जगहों की कर्णभेदी आवाजों से पूरा वातावरण गुंजायमान था और एक मुसाफिर पटना की बस पर बैठने को आतुर था, और दो-तीन बस छोड़ने के बाद उसे अपनी मनपसंद की सीट मिल गई और वो उस सीट पर अपने कब्जे में लेकर बैठ गया। बस चली और ठुमकते हुए बाईपास पर पहुंचने के बाद दाएं तरफ मुड़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 20 पर पहाड़ के किनारे किनारे तांडव करते हुए आगे बढ़ने लगी। बस चली जा रही थी और मुसाफिर अपनी धुन में बाहर के हरे भरे दृश्यों का आनंद लेते हुए न जाने कौन सी दुनिया में मगन था तभी फोन में कंपन होती है और एक मैसेज दिखता है :

Saturday, June 26, 2021

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)



ये बात 20 साल पूर्व उस समय की है जब हम नवादा के कन्हाई लाल साहू महाविद्यालय में प्रवेशिका (इंटरमीडिएट) में पढ़ते थे। मार्च के महीने हमारी की परीक्षा चल रही थी। इन परीक्षाओं के बीच में ही हमें रविवार के दिन दानापुर छावनी में सेना भर्ती के लिए कुछ जरूरी प्रकियाओं के लिए दानापुर भी जाना था। शनिवार को दोपहर 1.30 बजे परीक्षा खत्म होने के बाद हम अपने कमरे पर गए और वहां से बैग उठाकर बस स्टेशन आ गए। वैसे तो नवादा से पटना के लिए हर दस मिनट में बसें मिल जाती थी लेकिन उस समय चारा वाले मुख्यमंत्री जी की कोई रैली निकलने वाली थी इसलिए बसों की संख्या कम हो गई थी, फिर भी हमें बस जल्दी ही मिल गई और रात होते होते हम पटना पहुंच गए और समयानुसार कहें तो 8 से ज्यादा बच चुके थे।

Friday, June 25, 2021

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)



भारत गांवों और तीर्थों का देश है और हम इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि भारत का शरीर गांवों में और हृदय तीर्थों में बसता है। भारतीय जनजीवन में संचित चिरकालीन श्रद्धा एवं भावना का यथार्थ दर्शन इन तीर्थों में ही होता है। हमारे देश में यह जो एक अद्भुत सामासिक एकता दिखाई देती है, उसका रहस्य भी हमारे हृदयस्वरूप इन्हीं तीर्थों की पवित्रतम एवं मनोरम तपोभूमि में निहित है। क्योंकि वहां देश के कोने-कोने से लाखों नर-नारी एक ही कामना, एक ही आकर्षण के वशीभूत होकर पुरातन काल से एकत्रित होते आ रहे हैं। वे कहीं भी रहते हों, कुछ भी करते हों, उनका अन्तर्मन अधिक नहीं तो जीवन में कम-से-कम एक बार इन तीर्थों की पवित्र रज मस्तक पर धारण करने को आतुर रहता है। यही कारण है कि जब यात्रा की आधुनिक सुविधाएं प्राप्त नहीं थी, तब भी तीर्थयात्रियों का तारतम्य कभी टूटा नहीं और सहस्रों मील पैदल चलकर तीर्थों के दर्शन करने लागे सहर्ष आते-जाते रहे। इस प्रकार उपलब्ध इतिहास की दृष्टि से भी परे, काल की अनन्त श्रृंखला को लांघकर अनेकानेक छोटे-बड़े उथल-पुथल के अभ्यन्तर, वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा अन्य किसी भी विवशता के बन्धन से मुक्त, देश की आन्तरिक समता को अक्षुण्ण बनाए रखकर उसे अमर जीवन प्रदान करने का जो श्रेय प्रकृति के सुरम्य वातावरण में बसे हमारे तीर्थों को प्राप्त है। उसकी मिसाल संसार में अन्यत्र दुर्लभ है।

Thursday, June 24, 2021

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)



अगर कोई हमें ये पूछे कि आपको क्या अच्छा लगता है और आपके पास कुछ भी करने के लिए नहीं हो तो क्या करेंगे तो मेरा जवाब कुछ ऐसा होगा!

हम वो पथिक हैं जो सदा ही एक सफर में रहना चाहते हैं और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलते ही रहना चाहते हैं। हमें मंजिल नहीं चाहिए, हमें तो बस रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते ही मेरे लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव।

हम चलते रहना चाहते हैं और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहते हैं। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें हमें पागल, बावला और दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में हम बस चलते रहते हैं, उससे मिलने के लिए। हम बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहते हैं और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेने चाहते हैं।

Wednesday, June 23, 2021

शब्द (Word)

शब्द (Word)


शब्द ... आप जो चाहें सो कह सकते हैं, जी हां, लेकिन ये शब्द ही हैं जो गाते हैं, वे ऊपर उठते हैं और नीचे उतरते हैं... मैं उनके सामने नत मस्तक होता हूं... मैं उन्हें प्यार करता हूं, उन्हें पकड़ता हूं, उनकी अवमानना करता हूं, उन्हें काटता हूं, उन्हें पिघलाता हूं... मैं शब्दों से इतना प्यार करता हूं... अनपेक्षित शब्द... कुछ शब्द...

Friday, June 11, 2021

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण') (The Helmet story)

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण'
(The Helmet 
story)



जी हां, मैं वही हूं, जिसे हर बाइक खरीदने वाला बड़े अरमान के साथ अपने घर ले जाता है और कहीं खूंटी पर टांग देता है या किसी मेज के नीचे रख देता है। अरे जब मुझे प्रयोग ही नहीं करना था तो अपने घर में मुझे क्या घर की शोभा बढ़ाने के लिए लाए हो। मुझे अगर तुम केवल अपने घर की शोभा ही बढ़ाने के लिए लाए थे तो उससे अच्छा मुझे दुकान में ही पड़े रहने देता, कम से कम मैं वहां अपने अन्य साथियों के साथ तो रहता था। मुझे अपने दोस्तों से अलग करके अपने घर लाते समय तो तुम कह रहे थे कि मैं कहीं भी जाऊंगा तो तुमको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा और मैंने भी वादा किया था तुमसे कि जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुमको कुछ नहीं होने दूंगा, पर तुम तो घर लाकर मुझे भूल ही गए।

Wednesday, June 24, 2020

ताड़ : प्रकृति का अनुपम उपहार (Palm: The Unique Gift of Nature)

ताड़ : प्रकृति का अनुपम उपहार
(
Palm: The Unique Gift of Nature)




बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे ताड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।

पता नहीं किसने ये कहावत शुरू किया होगा। ताड़ का पेड़ सीधे भले ही मुसाफिरों को छाया नहीं देता पर उस एक पेड़ के इतने गुण हैं कि यही कह सकते हैं कि

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं ताड़ गुण लिखा न जाइ।

ताड़ का पेड़ प्रकृति प्रदत्त एक अनुपम उपहार है जिसका जीवन तो बस परोपकार के लिए ही है, वो अपना हर चीज (जड़, तना, पत्ता, फल, बीज, आदि सभी चीज) लोगों की सेवा में समर्पित कर देता है। 

Wednesday, June 10, 2020

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)


एक फकीरे को बहुत समय से एक बेशकीमती हीरे की तलाश थी और वो आज उसी हीरे की तलाश में सुनसान और निर्जन राहों पर निकल पड़ा था। वो उन सुनसान राहों पर चला ही जा रहा था कि बीच में एक नदी के प्रवाह ने उसको रोक लिया। अनजान रास्ते में मिलने वाली नदी को यूं ही अनजाने में पार करने से पहले फकीरे ने कुछ देर इंतजार किया कि क्या पता कोई मुसाफिर ईधर से गुजरे जिसे नदी में पानी का अंदाजा हो और वो भी उसके साथ नदी पार कर जाए। उसकी ये सोच भी बहुत जल्द फलीभूत हुई। वो नदी किनारे बैठा किसी मुसाफिर का इंतजार कर ही रहा था कि कई राहगीरों का एक समूह भी नदी तट पर आया जो नदी के दूसरी तरफ अपने काम पर जा रहा था। फकीरा भी उन लोगों के साथ नदी पार करने लगा और उन राहगीरों से बेशकीमती हीरे की जगह के बारे में पूछताछ करने लगा। पूछने पर उन राहगीरों ने केवल इतना ही बताया कि नदी पार करने के बाद आप उन कच्चे रास्ते पर चलेंगे तो दूर, थोड़ा दूर, थोड़ा और दूर निर्जन राह पर एक वटवृक्ष आएगा और उसके सामने ही पश्चिम की तरफ कटा पहाड़ है और कटा पहाड़ पार करते ही आपको वो हीरा मिल जाएगा।

Monday, April 27, 2020

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)




रात के आठ बज चुके थे और शम्भू दयाल अपनी पत्नी गौरी दयाल, मित्र विक्की दयाल और उनकी पत्नी विनिता दयाल के साथ रेलवे स्टेशन पहुंचकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। अभी गाड़ी आने में करीब डेढ़ घंटे का ज्यादा का समय बाकी था। इस डेढ़ घंटे के समय को शम्भू दयाल जी ने यहां तक आने के बस के सफर की दास्तान छेड़ दी जो कुछ खुशी और कुछ गम लिए हुई थी। हुआ ये था कि शम्भू बाबू घर से इतना समय लेकर चले थे कि शाम से पहले ही उनको स्टेशन पहुंच जाना चाहिए था पर कुछ बस वालों की चालाकी और कुछ यातायात की दुश्वारियों के कारण वो अपने द्वारा तय किए गए समय से करीब 3 घंटे की देर से यहां तक पहुंचे थे।

Saturday, April 4, 2020

एक छोटी सी ट्रेन यात्रा (A Short Train Journey)

एक छोटी सी ट्रेन यात्रा (A Short Train Journey)







(यात्रा तिथि : 2 दिसम्बर 2019) : राजगीर (राजगह, राजगृह) के कुछ जगहों को घूमते-देखते लगभग 11 बजे चुके थे और अब हमें यहां से अपने गांव की तरफ प्रस्थान करना था तथा उसके लिए पहले हमें बिहार शरीफ पहुंचना था। राजगीर से बिहार शरीफ जाने के लिए हर 5 से 7 मिनट पर बसें मिल जाती है और छोटी गाडि़यां भी, साथ ही करीब एक दर्जन ट्रेन उपलब्ध है। इतने सारे साधन होने के बावजूद भी हम ये सोचने लगे कि हम किस साधन से बिहार शरीफ तक जाएं, बस से या ट्रेन से। और यही सोचते हुए कुछ मिनट ऐसे ही बीत गए और सोचने के पीछे भी एक कारण था। वो ये कि अगर हम बस से जाते हैं तो बस जी हमें जिस बस पड़ाव पर उतारेंगे वहां से दूसरे बस पड़ाव तक जाने के लिए ऑटो से दूसरी तरफ जाना पड़ेगा क्योंकि बस हमें शहर के पश्चिम तरफ के बस पड़ाव पर छोड़ेगी और मेरे गांव की गाड़ी शहर के पूरब से मिलती है। यही यदि हम ट्रेन से जाते हैं तो ट्रेन महाराज हमें शहर के पूरब की तरफ छोड़ेंगे जहां से मैं पांच मिनट पैदल चलकर पांच मिनट में उस बस पड़ाव पर पहुंच जाऊंगा और कुछ धन भी बचा लूंगा क्योंकि यदि बस से जाता तो मेरा खर्चा 30 और 12 मतलब कि कुल 42 रुपए खर्च होते और ट्रेन महाराज हमें केवल और केवल और केवल 10 रुपए में ही वहां पहुंचा देंगे और शहर की भीड़ भाड़ से भी बचा लेंगे।

Thursday, April 2, 2020

लवनी और फेदा (Lavni and Feda)

लवनी और फेदा (Lavni and Feda)




गांव से जब हम पहली बार दिल्ली आए थे हमें बहुत ही अजीब सा महसूस हुआ था। वो अजीबपन कुछ इस तरह का था; जैसे, सिर्फ काली सड़कें, कंक्रीट से बने पक्के मकान हैं, पेड़ों के नाम पर इक्का-दुक्का पेड़, जिनके नाम जानने के लिए भी मुझ अनाड़ी को किसी वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर और वैज्ञानिक की जरूरत पड़ जाए। हमारे यहां तो गांव में के पेड़ों के नाम आम, अमरूद, ताड़, खजूर, शीशम, पाकड़, गूलर, महुआ, लसोड़ा, सिरिस, कटकरेजी, पुटुस आदि होते थे और गांव तो गांव पास के शहरों में भी ये सब पेड़ मिल जाते हैं; पर दिल्ली आकर उन पेड़ों को के बारे में जानना ख्वाब बन गया और देखना तो सपना।

Sunday, February 2, 2020

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)



शिव के प्रति आस्था तो मेरे मन में बचपन से ही थी। सावन आने के कुछ दिन पहले से ही गांव शिवमय हो जाता था। जहां सभी महिलाएं गांव के शिवालय में हर दिन महादेव पर जल चढ़ाने जाती थीं वहीं गांव के बहुत सारे पुरुष कांवड़ लेकर बाबा के नगरिया बाबाधाम जाते थे और उन जाने वाले लोगों में मेरे पिताजी भी हुआ करते थे। सभी के देवघर से लौटने तक प्रसाद का इंतजार करते थे। जाने के करीब सप्ताह भर बाद सब लौट कर आते तो मकोनदाना, चूड़ा, बेलचूर्ण और पेड़ा दम भर खाते थे। वैसे चूड़ा शब्द आया तो एक बात है कि देवघर जैसा स्वादिष्ट चूड़ा और और पेड़ा दुनिया में कहीं नहीं मिलता होगा।

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)




वो बचपन के दिन भी कितने कितने प्यारे थे। जब स्कूल में गर्मी की की छुट्टियां होती थी तो सभी भाई कोई नाना के घर, कोई मौसी के यहां तो कोई बुआ के यहां चले जाते थे और हम अकेले ही बिना टिकट के बिहार शरीफ से पटना अपने बड़का बाबू (बड़े पापा) के यहां चले जाते थे। वहां जाते ही सबसे पहले कहते थे कि बस से आया या रेल से तो मैं कहता था कि रेल से आया, फिर एक ही जवाब मिलता था उनकी तरफ से कि इस बार भी तू पक्का बिना टिकट के आया होगा। कितनी बार कहा हूं कि टिकट ले लिया कर पर मानता नहीं है, किसी दिन पकड़ लेगा टीटी तो हम लोग खोजते हुए परेशान होंगे। मैं कहता था कि बाऊजी कुछ नहीं होगा, टीटी पकड़ेगा तो भाग जाएंगे न और कहां ले जाएगा पकड़कर मुझे।

Sunday, December 15, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : सुबह घर से चलकर यहां आते आते दोपहर हो चुकी थी और कुछ मिनट यहां गुजारने के बाद अब समय था यहां से वापसी का तो कुछ मीठी और सुनहरी यादें लेकर हम चल पड़े थे वापसी के उसी पथ पर जिससे होकर हम यहां तक आए थे। आते समय तो हम उन दोनों लड़कों के साथ आए थे पर वापसी मुझे अकेले ही जाना था क्योंकि वो दोनों लड़के बहुत पहले ही यहां से जा चुके थे। अगर वो रहते तो हमारा एक-दो अच्छा फोटो खींच देते पर अब सोचने का क्या फायदा वो तो जा चुके थे तो हमने खुद कभी अपने मोबाइल से तो कभी कैमरे से सेल्फी लेने की नाकाम सी कोशिश करते रहे और उन कोशिशों में ही एक अच्छी सी फोटो आ गई और अच्छी भी ऐसी कि जिसकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी। फोटो-वोटो लेने के बाद हम चल पड़े उसी रास्ते पर जिस रास्ते से आए थे और ठीक 12.00 बजे हम फिर से पहाड़ के उसी कटे हुए भाग तक पहुंच चुके थे। वहां पहुंचकर झील से एक वादा किया कि एक बार और पुनः जल्दी ही आऊंगा और फिर उन कच्चे रास्तों पर धूल का गुब्बार उड़ाते हुए सुस्त कदमों से धीरे धीरे चल पड़े। आधे घंटे के सफर के बाद एक बार पुनः हम नदी के उस स्थान पर आ चुके थे जहां हम सुबह पानी से होकर गुजरे थे। वहां पहुंचकर हमने अपने कदमों को रोककर पहाड़ पर खड़े अजातशत्रु स्तूप को एक नजर देखा था, और मन में सोचा था कि यहां भी हो लेते हैं पर समय और शरीर दोनों हमें इस काम की इजाजत नहीं दे रहे थे तो हमने जल्दी ही दुबारा आने का वादा किया और फिर फिर नदी को पार करके गिरियक बाजार की तरफ बढ़ चले।

Saturday, December 14, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3, Ghoda Katora Taal aur Main)

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3: Ghoda Katora Taal aur Main)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : मेरे प्यारे घोड़ा कटोरा, जब हमने तेरे बारे में सुना था तो लगा था कि तुम गांव की तलैया जैसे होगे, फिर किसी ने बताया था कि नहीं वो तलैया के जैसा न होकर अपने गांव की नदिया के जैसा है। फिर गया था तुमको देखने पर न जाने क्यों नहीं पहुंच पाया था तेरे पास, या तो तुम मुझसे रूठे थे और मुझसे मिलना नहीं चाहते थे या फिर मेरे मन में ही तुमसे मिलन की लालसा नहीं थी। अपने घर की छत के कोने से तेरे चारों तरफ फैले पहाड़ों को देख कर सोचा करता था कि पता नहीं कैसे तुम अकेले इन पहाड़ों के बीच में रहते होगे, पर मुझे क्या पता था कि ये पहाड़ ही हैं जो तुम्हारी रक्षा के लिए चारों तरफ तुमको घेरे खड़े हैं और तुम उनके बीच बिल्कुल सुरक्षित हो। फिर न जाने कितनी बार, अनगिनत बार, तेरे किनारे से गुजर गया, पर न तो तुमने मुझे बुलाया न ही मैं तुम्हारे पास गया, न तो तुमने मेरी तरफ नजर किया और न ही मैंने तुमसे नजर मिलाया और बस तेरे किनारे से आते और जाते रहे; और गुजरते समयांतराल के बाद मैं भी तुमको भूल गया और तुमने भी मुझे भुला दिया।

Friday, December 13, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : हम अपने गांव से चलकर गिरियक पहुंचे और वहां एक दुकान वाले से घोड़ा कटोरा तक जाने का रास्ता पूछा तो उन्होंने दो रास्ते बताए, एक तो सीधा नदी पार करके और दूसरा अगर नदी पार करना नहीं चाहते हैं तो 3 किलोमीटर घूम कर जाने वाला रास्ता जहां नदी पर पुल बना है, पर पुल वाला रास्ता भी आगे बढ़कर यहीं नदी के रास्ते में ही मिलता है। अब केवल पानी में पार होने से बचने के लिए 3 किलोमीटर का लंबा रास्ता कौन तय करे और वैसे भी नदी के पानी में पार हुए बहुत दिन हो गए हैं क्योंकि अब अधिकतर जगहों पर पुलों का निर्माण हो गया है तो नदी से गुजरने का मौका भी नहीं मिलता है और आज ये मौका मिल रहा था तो हम इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे और चल पड़े थे पानी वाले नदी को नदी पार करने। उन्होंने हमें जो रास्ता बताया था हम उसी ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगे। गली से चलते हुए नदी तक पहुंचने में हमें करीब 20 मिनट का समय लगा। वहां देखा तो कुछ लोग नदी पार कर रहे हैं तो हम भी उनके पीछे हो लिए। नदी पार करते ही एक सज्जन ने बताया कि आगे अभी और एक जगह पार करना पड़ेगा और सवाल भी शुरू किया कि 

Thursday, December 12, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)



घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : आइए हम आपको इस बार एक प्राकृतिक झील की सैर पर ले चलते हैं, जो 2500 साल से भी ज्यादा पुरानी है और यह स्थान बिहार के नालंदा जिले में राजगीर और गिरियक के मध्य पहाडि़यों के बीच स्थित है और इसका नाम है घोड़ा कटोरा ताल। यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता राजगीर विश्व शांति स्तूप तक जाने वाले रोपवे के पास से है और दूसरा रास्ता गिरियक से है। गिरियक पटना-रांची राजमार्ग पर बिहार शरीफ से रांची की ओर जाने पर बिहार शरीफ से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो जानवरों के हाट के लिए प्रसिद्ध है। राजगीर वाले रास्ते से इस झील की दूरी 6 किलोमीटर है, वैसे कहते हैं कि 6 किलोमीटर है लेकिन है 7 किलोमीटर और साधन के रूप में या तो आपको पैदल जाना पड़ेगा या टमटम (घोड़ा गाड़ी) से। पक्षी अभयारण्य क्षेत्र होने के कारण यहां मोटर गाड़ी पूरी तरह से प्रतिबंधित है। गिरियक वाले रास्ते से भी दूरी करीब 5-6 किलोमीटर है और जाने का साधन कच्ची सड़कों पर मलंग फकीर बनकर धूल उड़ाते हुए चलना। वैसे पारंपरिक रास्ता राजगीर से ही है, गिरियक वाला रास्ता तो हम जैसे भटकटैया लोगों के लिए है कि वीराने में भटकते हुए चलते चले जाएं।

Saturday, November 30, 2019

बेचैन रातें (Anxious Nights)

बेचैन रातें (Anxious Nights)




दीपक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में व्यस्त था तभी पूरे दिन खामोश पड़ा रहने वाला चलभाष अचानक ही घनघना उठता है। ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....!!!!!
दीपक अनजान नम्बर देखकर बड़े ही अनमने ढंग से फोन रिसीव करता है, पर उधर से जानी-पहचानी आवाज से सामना होता है। आपस में कुशलक्षेम की पूछने का दौर चलता है।
‘‘हेलो अमित, कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं दीपक। आप बताइए आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं। पर आज अचानक इस समय कैसे? सब कुछ कुशल मंगल तो है न?’’
‘‘हां, सब कुछ ठीक है। वो क्या है कि आरती को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लेकर आया था, पर डाॅक्टर ने उसे एडमिट कर लिया।’’

Friday, November 29, 2019

उस रात की यादें (Memories of that night)

उस रात की यादें (Memories of that night)





वैसे तो रात को अंधेरे के लिए जाना जाता है लेकिन कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जिसके कारण रात अंधेरी न होकर सुनहरी हो जाती है। यह घटना तब की है जब हमारी आयु केवल 15 वर्ष थी। मैट्रिक की परीक्षा का अंतिम दिन था। सभी विषयों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और अंतिम दिन केवल एक विषय बचा हुआ था। हर साल की तरह इस साल भी हमारे स्कूल का परीक्षा केन्द्र करीब 40 किलोमीटर दूर था। परीक्षा के अंतिम दिन सुबह पिताजी सारा सामान लेकर गांव की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और हम स्कूल की तरफ। एक बजे परीक्षा समाप्त हुई और अंतिम बार स्कूल के साथियों से मुलाकात करते करते और बातें करते करते कब दो घंटे बीत गए पता नहीं चला।

Thursday, November 28, 2019

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)



मैं मगध हूँ..!
मैं मगध हूँ... एक सभ्यता हूँ... एक संस्कृति हूँ...

गंगा के विस्तृत जलोड़ और कछार की मेरी यह भूमि समृद्ध रही है अपने मतवाले गजों और घनघोर साल के जंगलों से...! शिलागृहों और गर्तवासी आदिमानवों की शिकार-क्रीड़ांगन रही यह भूमि, संस्कृति सूर्य के चमकने पर जन से जनपद, जनपद से महाजनपद, महाजनपद से राज्य और राज्य से अखिल जम्बूद्वीप का केंद्र और निर्माणकर्ता रही है और इसने ही प्रथम साम्राज्य बने उस आर्यावर्त को भी बनाया।

Wednesday, November 27, 2019

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)




दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।

Tuesday, November 26, 2019

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)




सफर के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं तो रात के सन्नाटे में तेज हवा के झोंकों के बीच बिल्कुल अकेले ऋषिकेश में रामझूला अवश्य पार करें और उस पल के अद्भुत रोमांच को महसूस करें। ऋषिकेश स्थित राम झूला और लक्ष्मण झूला का आज तक हमने केवल नाम ही सुना था पर कभी देखा नहीं था। पर अचानक हुई यात्रा में हमें इसे देखने का मौका मिल गया। 30 मार्च 2019 रात को तीन बजे ऋषिकेश पहुंचे और पैदल ही चल पड़े राम झूला की तरफ। रात के सन्नाटे को चीरते हम केवल तीन लोग (मैं, पत्नी कंचन और बेटा आदित्या) तीर्थनगरी की सड़कों पर बढ़े जा रहे थे। बस स्टेशन से चन्द्रभागा पुल तक एक भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था, बस एक-दो बसें ही थी जो आ-जा रही थी और हम सब डरे-सहमे ऐसे ही आगे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी एक-दो कुक्कुर महाराज जी भौंकते हुए बगल से गुजर जाते तो कभी खड़े होकर अपने संगीत सुनाकर डराने का असफल प्रयास करते, लेकिन हम तो बस अपने धुन में चले ही जा रहे थे।

Monday, November 25, 2019

बदरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 minutes aur Ganga Snan)

दरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 Minutes aur Ganga Snan)





बदरीनाथ यात्रा के दूसरे भाग में आइए हम आपको हरिद्वार से आगे के सफर पर ले चलते हैं। आगे चलने से पहले हम आपको थोड़ा बीते हुए लम्हों में एक बार फिर से ले जाना चाहते हैं। अभी तक आपने देखा कि कैसे हम हरिद्वार पहुंचे और कैसे केदारनाथ की बस मिली लेकिन पीछे की सीट मिलने के कारण हमने उस बस को छोड़ दिया और उसके बाद बदरीनाथ जाने वाली बस पर मनपसंद सीट मिलने पर उसी सीट पर अपना कब्जा जमाया और सीट अपने नाम कर लिया। अब सीट तो हमने हथिया लिया था पर अभी भी ये तय नहीं था कि हम बदरीनाथ पहुंचेंगे या फिर रुद्रप्रयाग उतरकर केदारनाथ चले जाएंगे; या चमोली उतरकर रुद्रनाथ चले जाएंगे। खैर वो बातें आगे होगी अभी हम पिछले आलेख में किए गए वादे के अनुसार आपको गंगा स्नान के लिए ले चलते हैं।