बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)
शिव के प्रति आस्था तो मेरे मन में बचपन से ही थी। सावन आने के कुछ दिन पहले से ही गांव शिवमय हो जाता था। जहां सभी महिलाएं गांव के शिवालय में हर दिन महादेव पर जल चढ़ाने जाती थीं वहीं गांव के बहुत सारे पुरुष कांवड़ लेकर बाबा के नगरिया बाबाधाम जाते थे और उन जाने वाले लोगों में मेरे पिताजी भी हुआ करते थे। सभी के देवघर से लौटने तक प्रसाद का इंतजार करते थे। जाने के करीब सप्ताह भर बाद सब लौट कर आते तो मकोनदाना, चूड़ा, बेलचूर्ण और पेड़ा दम भर खाते थे। वैसे चूड़ा शब्द आया तो एक बात है कि देवघर जैसा स्वादिष्ट चूड़ा और और पेड़ा दुनिया में कहीं नहीं मिलता होगा।






































