केदारनाथ : एक सपना (Kedarnath: A Dream)
एक सपना ... फिर ...हां ... ना ... हां ... बाइक ... दुपहरी ... सड़क ... इंतजार ... मिलन ... रास्ता ... ट्रैफिक की मारा-मारी ... एक और मिलन ... स्वागत का दौर ... फिर राहें ... वो सुनहरी शाम ... नागिन की चाल सी टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें ... यादगार रात ... बरसात ... इंतजार ... फिर मिलन ... आगे का सफर ... ऊंची-नीची सर्पीली सड़कें ... अनजान मुसाफिर ... पहली बाइकिंग ... दिल की धड़कन का बढ़ना ... बस अब और नहीं ... लाओ बाइक मुझे दो ... तुम जाओ गाड़ी में ... सुनसान जंगल ... ठंडी रात ... थोड़ी नींद ... फिर आगे का सफर ... लो अब थोड़ा फिर से हाथ आजमाओ बाइक पर ... एक अनाड़ी ... चल पड़ा धीरे धीरे ... कुछ डर ... कुछ आशंका ... कुछ घबराहट ... आखिर आ ही गई मंजिल ... फिर आए साथी ... वो भीड़ ... समय सीमा खत्म ... प्लीज जाने दीजिए ... नहीं अब नहीं ... प्लीज प्लीज प्लीज ... थोड़ा सच ... थोड़ा झूठ ... थोड़ा जिद ... थोड़ी श्रद्धा तो थोड़ी भक्ति ... मेरी पत्नी जा चुकी ... मेरी बहन जा चुकी ... मेरी माता जी आगे जा चुकी ... या तो उनको वापस लाओ या मुझे जाने दो ... ठीक है जाओ ... पर संभलकर ... बढ़ चला कारवां ... कुछ कदम और तेज बरसात ... कुछ ईधर-कुछ उधर ... कुछ तितर-कुछ बितर ... साथी गए बिछड़ ... कुछ आगे ... कुछ पीछे ... बस अब और नहीं ... बस थोड़ी दूर ... हां-ना हां-ना ... और फिर सबका मिलना ... फिर कदम-कदम चलना ... आधी रात का गुजर जाना ... फिर टेंट में शरण ... अंधेरे मुंह फिर अगला सफर ... कदम-कदम बढ़ाते-बढ़ाते ... वो पर्वत ... वो घाटी ... वो नदी ... वो बर्फ ... वो ठंडी हवा ... और बाबा का दर ... एक नया दिन ... एक नई ऊर्जा ... हर हर महादेव ... वो स्वर्ग का नजारा ... वो भीड़ के दर्शन ... वीआईपी गेट ... बाबा के आगे नतमस्तक ... कुछ महीने पहले दिन के समय में अचानक देखे गए एक सपने का पूरा होना।
केदारनाथ की मधुर यादें (29 अप्रैल 2018)