Monday, February 24, 2025

केदारनाथ : एक सपना (Kedarnath: A Dream)

केदारनाथ : एक सपना (Kedarnath: A Dream)



एक सपना ... फिर ...हां ... ना ... हां ... बाइक ... दुपहरी ... सड़क ... इंतजार ... मिलन ... रास्ता ... ट्रैफिक की मारा-मारी ... एक और मिलन ... स्वागत का दौर ... फिर राहें ... वो सुनहरी शाम ... नागिन की चाल सी टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें ... यादगार रात ... बरसात ... इंतजार ... फिर मिलन ... आगे का सफर ... ऊंची-नीची सर्पीली सड़कें ... अनजान मुसाफिर ... पहली बाइकिंग ... दिल की धड़कन का बढ़ना ... बस अब और नहीं ... लाओ बाइक मुझे दो ... तुम जाओ गाड़ी में ... सुनसान जंगल ... ठंडी रात ... थोड़ी नींद ... फिर आगे का सफर ... लो अब थोड़ा फिर से हाथ आजमाओ बाइक पर ... एक अनाड़ी ... चल पड़ा धीरे धीरे ... कुछ डर ... कुछ आशंका ... कुछ घबराहट ... आखिर आ ही गई मंजिल ... फिर आए साथी ... वो भीड़ ... समय सीमा खत्म ... प्लीज जाने दीजिए ... नहीं अब नहीं ... प्लीज प्लीज प्लीज ... थोड़ा सच ... थोड़ा झूठ ... थोड़ा जिद ... थोड़ी श्रद्धा तो थोड़ी भक्ति ... मेरी पत्नी जा चुकी ... मेरी बहन जा चुकी ... मेरी माता जी आगे जा चुकी ... या तो उनको वापस लाओ या मुझे जाने दो ... ठीक है जाओ ... पर संभलकर ... बढ़ चला कारवां ... कुछ कदम और तेज बरसात ... कुछ ईधर-कुछ उधर ... कुछ तितर-कुछ बितर ... साथी गए बिछड़ ... कुछ आगे ... कुछ पीछे ... बस अब और नहीं ... बस थोड़ी दूर ... हां-ना हां-ना ... और फिर सबका मिलना ... फिर कदम-कदम चलना ... आधी रात का गुजर जाना ... फिर टेंट में शरण ... अंधेरे मुंह फिर अगला सफर ... कदम-कदम बढ़ाते-बढ़ाते ... वो पर्वत ... वो घाटी ... वो नदी ... वो बर्फ ... वो ठंडी हवा ... और बाबा का दर ... एक नया दिन ... एक नई ऊर्जा ... हर हर महादेव ... वो स्वर्ग का नजारा ... वो भीड़ के दर्शन ... वीआईपी गेट ... बाबा के आगे नतमस्तक ... कुछ महीने पहले दिन के समय में अचानक देखे गए एक सपने का पूरा होना।

केदारनाथ की मधुर यादें (29 अप्रैल 2018)

Sunday, February 23, 2025

जंगल (Woods)

जंगल (Woods)


जंगल भी बहुत अजीब होता है न ... तरह तरह के छोटे बड़े पेड़ ... घनी झाडि़यां ... ऊबड-खाबड़ रास्ते ... पेड़ों पर हरियाली ... छांव का बसेरा ... पेड़ों से छन कर आती सूरज की किरणें ... शांति और नीरवता ... और उसे तोड़ती हुई झिंगुरों की मधुर ध्वनि ... हर कदम पर बिखरे दिलकश नजारे ... चलते हुए कदमों में लिपटते पत्ते और बेलें ... थोड़ा सा भय मिश्रित रोमांच ... उसके ऊपर शाम के बाद घिरता अंधेरा ... दूर दूर तक कोई इंसान नहीं ... हाथ में कैमरा लिए खूबसूरत दृश्यों की तलाश ... किसी जानवर को तलाशती आंखें ... और थोड़ी सी सरसराहट होते ही चौंकन्ने हो जाना ... ईधर-उधर देखना ... कुछ न दिख पाने पर मन में एक उदासी के साथ राहत की सांस लेना ... कुछ कदम चलना और फिर वही प्रक्रिया दुहराना ... धीरे धीरे अंधेरे का गहराता जाना ... रास्ते का भी न दिखाई देना ... टाॅर्च की मद्धिम रोशनी भी रास्ता चलने के लिए नाकाफी ... सब कुछ कितना अजीब लगता है न? ये कोई सपना नहीं है, ये वो पल है जब हमें मध्यमहेश्वर से लौटते हुए गोंडार में ही शाम हो गई थी और अंधरे में ही केवल हम दो लोग उस जंगल को पार कर रहे थे तो मन में ऐसे ही कुछ भाव आ-जा रहे थे।

फोटो : मध्यमहेश्वर जाते हुए रांसी से गोंडार के बीच,

Thursday, February 20, 2025

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

—हम मिलेंगे कभी-कहीं!
—आखिर कब-कहां?
—वहीं कहीं दूर जहां मिलते हैं नदिया और आसमान एक दूसरे से और मिलकर एक हो जाते हैं या फिर मिलेंगे वहीं जहां से नदिया निकलती है या फिर वहीं जहां जाकर नदिया जाकर खत्म हो जाती है।

शायद यही पंक्तियां होंगी जिसने लोगों को यहां से वहां, वहां से कहीं और घूमने के लिए विवश किया होगा। फिर यही सोचकर लोगों ने अलग अलग दिशाओं में चलना शुरू किया होगा। कुछ लोग पूरब की ओर निकले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर रोज आता कहां से है और बस चलते ही चले गए होंगे फिर कभी न लौटने के लिए। वैसे ही कुछ लोग पश्चिम की ओर चले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर शाम को जाता कहां है, कहां जाकर वो रात में रुकता है और फिर पूरब की तरफ जाने वाले लोगों की तरह वो भी पश्चिम की ओर चले हेांगे बस चलते रहने के लिए।

Wednesday, February 19, 2025

पागल मन (Pagal Man)

पागल मन (Pagal Man)


कहीं जाने का विचार आते ही सबसे पहले मन में यही आता है कि कहां जाऊं, किधर जाऊं, किस साधन से जाऊं, किसके साथ जाऊं और भी न जाने क्या क्या संशय मन में उमड़ने लगते हैं।
इन सब संशयों से पार पाकर केवल खुद को साथ लेकर निकल पड़ना ही घुमक्कड़ी, यायावरी या मुसाफिरी है, तो एक बार निकल पडि़ए खुद के साथ, खुद की खोज में खुद से मिलने के लिए इन हसीन और मनभावन वादियों में।
रास्ते में मिलने वाले मोड़ों पर कुछ समय गुजारिए, किसी झरने के पास बैठकर झरने में पैर डालकर बैठे रहिए और बहते हुए पानी को देखते रहिए, हरे-हरे पेड़ों के नीचे बैठकर उससे छनकर आती हुई धूप को निहारा कीजिए और किसी सुनसान वीराने में पक्षियों के चहचहाने की आवाज को महसूस कीजिए।

Wednesday, February 12, 2025

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)


भारत भूमि तीर्थों से भरी पड़ी है। ये तीर्थ स्थान हमारे देश के हृदय स्थल कहे जा सकते हैं, जहां चहुं ओर से लोग आते हैं और फिर लौट जाते हैं। हमारे समाज में तीर्थों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति के मन में एक महत्वाकांक्षा और लालसा सदैव बनी रहती है कि अपने जीवन-काल में वह किसी-न-किसी पवित्र देव-स्थल यानी तीर्थ स्थान के दर्शन अवश्य कर ले। कोई भी तीर्थ स्थान एक परम पवित्र स्थान होता है।

Monday, February 10, 2025

अधूरा प्यार (Adhoora Pyar)

अधूरा प्यार (Adhoora Pyar)


मिलने की बात तो बस एक बहाना था,
हकीकत तो ये थी तुम्हें दूर जाना था।
तुम चले गए और हम बस अकेले रह गए,
क्योंकि मुझे प्यार में वफा जो निभाना था।
मेरे शब्दों को पढ़ने वाले पूछते हैं कभी-कभी,
इतनी गहराई से लिखते हो क्या कोई अफसाना था।
तुम रहो या न रहो अब, मैं आंसू नहीं बहाऊंगा,
बहुत रुला चुके मुझे, तुम्हें जितना रुलाना था।
हम प्यार में थोड़े बेपरवाह क्या हो गए,
पर तेरे होठों पर मेरा नाम नहीं आना था।
दुनिया में सब करते हैं प्यार-मोहब्बत,
पर मुझे तो तुम पर खुद को लुटाना था।
उस दिन न तो तुम रूठी और न मैं रूठा था,
बस मंजिल पर आकर साथ अपना छूटा था।

✍️ अभ्यानन्द सिन्हा (10-02-2018)

Sunday, February 9, 2025

चलो कहीं चलते हैं... (Chalo kahin chalte hain)

 चलो कहीं चलते हैं... (Chalo kahin chalte hain)



‘‘जा रहे हैं कहीं,
पर कहां पता नहीं!’’

अक्सर ही हम कहते हैं कि ‘‘जा रहे हैं या जाकर आते हैं’’ पर हकीकत यही है कि ‘‘हम कहीं नहीं जाते’’। ‘‘कहीं भी जाने वाला इंसान कहीं नहीं जाता क्योंकि कहीं जाने के लिए कहीं से जाना पड़ता है’’ और ‘‘जहां से जाना पड़ता है वो जगह हमें कहीं जाने नहीं देती’’ क्योंकि ‘‘कहीं भी जाने वाला इंसान अकेला नहीं जाता’’। कहीं दूसरे शहर में एकदम से अकेले जाने पर भी नहीं और तब भी नहीं जब वह अपने परिवार, पति-पत्नी, बच्चे, माता-पिता और भाई-बहनों के भौतिक साथ के बिना अकेला ही निकलता है। कोई भी व्यक्ति अपनी जड़ों में जकड़े पांवों के थमने के बगैर, अपने दिलो-दिमाग में खालीपन के अहसास के बगैर अपनी दुनिया को छोड़ नहीं पाता क्योंकि हमारे साथ तमाम ताने-बाने सदा ही हमारी यादों में होते हैं। अपना इतिहास, अपनी संस्कृति में डूबा आत्मबोध सदा साथ होता है।

खूबसूरत रास्ते (Beautiful Ways)

खूबसूरत रास्ते (Beautiful Ways)


उतरे जो जिन्दगी तेरी गहराइयों में, महफिल में रह के भी रहे सदा तनहाइयों में।
इसे दीवानगी नहीं तो और क्या कहें, प्यार ढूढ़ते रहे हम सदा तेरी परछाईयों मे।।

रास्ते ऐसे तो मंजिल की फिक्र कौन करता है। जब इतने सुंदर नजारे रास्ते में दिखते हों तो मंजिल पर पहुंचने की जल्दी किसे होती है, बस देखते जाओ और चलते जाओ। ऐसे रास्ते जितने लम्बे होते हैं उतने ही मन को आनंदित करते हैं। ऐस रास्ते पर चलते हुए जब हम अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं तो एक आह सी निकलती है कि ये कहां आ गए हम यूं ही कदम कदम चलते चलते।

Sunday, February 2, 2025

झरने और नदी की यात्रा (Journey of Waterfall and River)

झरने और नदी की यात्रा (Journey of Waterfall and River)


यात्रा-कथा कहिए, यात्रा-विवरण कहिए या यात्रा-वृत्तांत कहिए या आपके मन में जो आए वो कह लीजिए। इसकी रचना के लिए न तो कोई निर्दिष्ट पद्धति है न ही कोई निश्चित सिद्धांत। पैरों के साथ-साथ मन के अनुसार ही इसकी पटकथा चलती है और उस पर यदि शब्दों ने सुर-ताल मिला दिया तो बस फिर कहना ही क्या हो गया काम आसान और इसमें से यदि किसी एक ने भी थोड़ा सा साथ नहीं दिया तो फिर लाख प्रयासों के बाद भी लिखना संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी यात्रा-कथा लेखन भी हिमालयी क्षेत्र के पर्वतारोहन (ट्रेकिंग) के जैसा ही प्रतीत होने लगता है। कभी तो एकदम सीधा, सरल, सपाट, तो कभी ढलान तो कभी चढ़ाई।