तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन

एक बहुत लम्बे इंतज़ार और लम्बे सफर के बाद हम आज उस जगह पर पहुंचे हुए थे, जहाँ हर दिन लाख लोग अपनी अपनी मुरादें लेकर आते रहते हैं लेकिन मैं यहाँ कोई मुराद या मन्नत लेकर नहीं आया था, मैं तो बस उस दिव्य जगह के दिव्य दर्शन के लिए यहाँ आया था। हर दिन सोचा करता था कि आखिर ऐसा क्या है उस जगह पर जहाँ हर दिन इतने सारे लोग जाते हैं और आज हम भी उसी जगह पर पहुंचे हुए हैं। शहरों की भाग दौड़ वाली जिंदगी से दूर यहाँ एक अलग ही शांति थी और इतने सारे लोग एक दूसरे से अनजान होते हुए भी अनजान नहीं दिख रहे थे। यहाँ एक साथ पूरे देश से आये हुए लोग देखे जा सकते हैं। सबकी अलग भाषा, अलग रहन सहन, अलग खान पान होते हुए भी यहाँ सब एक ही रंग में रंगे हुए नज़र आ रहे थे और वो रंग था भक्ति का। इस भीड़ में कुछ दूसरे देश के लोग भी दिखाई दे जाते थे और वो भी यहाँ आकर भक्ति के रंग में सराबोर थे। यहाँ आया हुआ हर व्यक्ति देश, राज्य, जाति, वर्ग, गरीब, अमीर को भूल कर बस भक्ति में लीन अपनी ही धुन में चला जा रहा था। यहाँ की स्थिति को देखकर मन में बस एक ही ख्याल आ रहा था कि काश हर जगह बस ऐसी ही शांति हो, जहाँ कोई किसी के आगे या पीछे न होकर बस एक साथ चल रहे हों।