वैष्णो देवी यात्रा (2016)
वैसे तो वैष्णो देवी की ये मेरी चौथी यात्रा है। इस बार भी पिछले साल की तरह नवरात्रों में अकेले जाने का प्लान किया। टिकट जून में ही बुक कर लिया था। जाने का टिकट 8 अक्टूबर का और आने का 10 अक्टूबर का संपर्क क्रांति से बुक किया। जाने से 6-7 दिन पहले अपने ऑफिस में कई लोगो को पूछा पर कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में मैंने यही सोचा कि इस बार भी अकेले ही जाएंगे। अब पता नहीं क्यों कोई चलने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे ये तो वो लोग ही जानते होंगे। मैंने लोगो को ये भी समझाया कि आप लोगो को ऑफिस से कोई छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी। शनिवार को ऑफिस के बाद हम लोग रात में जायेगे, फिर रविवार, सोमवार और मंगलवार तीन दिन की छुट्टी है। जाने से दो दिन पहले एक बार फिर मैंने लोगो से पूछना शुरू किया कि कोई वैष्णो देवी चलेगे तो चलिए और इसी क्रम में मृणाल नाम के एक सहकर्मी से जैसे ही मैंने पूछा तो बिना एक पल देर किये उन्होंने जाने के लिए हामी भर दी। वैसे टिकट बुक करवाते समय मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने मना कर दिया था इसलिए उनसे मैं नहीं पूछ रहा था। पर आज उन्होंने हां कर दिया। अब जब उन्होंने हां कर दिया तो उनके लिए टिकट भी चाहिए। खैर जो भी हो टिकट भी तत्काल से बुक कर लिया गया।
कटरा स्टेशन से लिया गया त्रिकुटा पहाड़ियों का दृश्य |
कटरा स्टेशन के बार बैठा हुआ हुआ मैं |
संक्षिप्त ब्यौरा
- 8 अक्टूबर 2016 (शनिवार ): दिल्ली से कटरा
- 9 अक्टूबर 2016 (रविवार): कटरा में थोड़ा आराम और दोपहर को कटरा से वैष्णो दरबार और भैरोनाथ और भैरोनाथ से वापस कटरा
- 10 अक्टूबर 2016 (सोमवार): दिन में आराम और मार्केटिंग और रात्रि में दिल्ली के लिए प्रस्थान
- 11 अक्टूबर 2016 (मंगलवार): 7 बजे दिल्ली पहुँच कर यात्रा समाप्त
कटरा स्टेशन के बाहर मृणाल |
कुछ जरूरी सावधानियां
- वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहाँ जाने का बेहतर मौसम गर्मी है।
- सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें।
- ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग न करें।
- भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहाँ तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ जरूर रखें।
- चढ़ाई के वक्त जहाँ तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएँ ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो।
- पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी।
अब यात्रा के बारे में
पहला दिन
8 अक्टूबर को नयी दिल्ली से रात में 8:50 बजे हमारी टिकट थी इसलिए इस दिन मैं और मृणाल दोनों ऑफिस से थोड़ा जल्दी निकल गए। ऑफिस से निकलते वक़्त ट्रेन में ही मिलने की बात हुई। उसके बाद मैं घर आया। घर आने के बाद जाने की तैयारी में जो कुछ कमी रह गयी थी उसे पूरा किया। मैं 7:15 बजे घर से निकल गया। बहार सड़क पर आकर एक त्रि-चक्रीय वाहन (ऑटो) बुक किया और नयी दिल्ली स्टेशन पहुच गया। इस समय करीब 8 बजे थे। 8:20 बजे हम नई दिल्ली के उस प्लेटफार्म जिस पर से संपर्क क्रांति जाने वाली थी। 10 मिनट में ही ट्रेन प्लेटफार्म पर लगा दी गयी। हम अपने सीट पर बैठ गए। मेरे ट्रेन में बैठने के कुछ मिनट बाद मृणाल भी आ गए। ठीक 8 :50 पर ट्रेन अपने गंतव्य की और चल पड़ी। ट्रेन में जितने लोग थे 100 में से 95 लोग वैष्णो देवी जाने वाले लोग ही थे।
ट्रेन अपने गति से सरपट चली जा रही थी। दूर दूर तक अँधेरा ही अँधेरा था। ट्रेन की खिड़की से जो रौशनी बाहर जा रही थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था की कोई जुगनू उड़ती हुई चली जा रही है। ट्रेन की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी। रात के संन्नाटे में ट्रेन की आवाज़ कुछ अलग ही लगती है। कुछ ही देर में ट्रेन की गति कम होने लगी तो मैं समझ गया की पानीपत स्टेशन बस आने ही वाली है और देखते देखते ट्रेन पानीपत पहुँच चुकी थी। स्टेशन से ज्यादा रौशनी बाहर थी और हो भी क्यों नहीं क्योंकि पानीपत एक औद्योगिक नगरी जो है।
ट्रेन अपने गति से सरपट चली जा रही थी। दूर दूर तक अँधेरा ही अँधेरा था। ट्रेन की खिड़की से जो रौशनी बाहर जा रही थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था की कोई जुगनू उड़ती हुई चली जा रही है। ट्रेन की आवाज़ के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी। रात के संन्नाटे में ट्रेन की आवाज़ कुछ अलग ही लगती है। कुछ ही देर में ट्रेन की गति कम होने लगी तो मैं समझ गया की पानीपत स्टेशन बस आने ही वाली है और देखते देखते ट्रेन पानीपत पहुँच चुकी थी। स्टेशन से ज्यादा रौशनी बाहर थी और हो भी क्यों नहीं क्योंकि पानीपत एक औद्योगिक नगरी जो है।
पानीपत में ट्रेन मुश्किल से 3 से 4 मिनट रुकी और उसके बाद अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। ट्रेन के चलते ही हम सोने की तैयारी में लग गए। हम अपने घर में वैसे 10 बजे से पहले ही सो जाते हैं और आज तो 10 से ज्यादा बज रहे थे। बर्थ पर लेटते ही नींद आ गयी। पानीपत से चलने के बाद ही हम सो चुके थे। कब अम्बाला, कब लुधियाना, कब जालंधर हमें कुछ पता चला। ट्रेन जब पठानकोट स्टेशन पर खड़ी थी तो हमारी नींद नींद खुली तो खिड़की से बाहर देखा तो घुप्प अँधेरा था। यहाँ से जम्मू की तरफ जाने पर मोबाइल का नेटवर्क बंद हो जाता है तो मैंने सोचा कि क्यों न एक बार घर बात कर लिया जाये। फ़ोन मिलाया तो तो ठीक से रिंग बजी भी नहीं की पत्नी ने फ़ोन रिसीव कर लिया था। पत्नी से बात करने के बाद बेटे से थोड़ा बात किया और उसके बाद सो गया। यहाँ अच्छी खासी ठण्ड लगने लगी थी। इसके बाद ट्रेन कब पंजाब की सीमा को पार करके जम्मू के सीमा में प्रवेश कर गयी कुछ पता नहीं चला।
त्रिकुटा पहाड़ियों से लिया गया कटरा शहर और रेलवे स्टेशन की छवि |
दूसरा दिन
जब नींद खुली तो ट्रेन जम्मू तवी स्टेशन पहुँचने वाली थी और देखते ही देखते ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुँच गयी।यहाँ ट्रेन से जितने लोग उतरे उससे कही ज्यादा लोग ट्रेन में सवार हो गए। जम्मू में करीब 10 मिनट रुकने के बाद अपने गंतव्य कटरा की और चल पड़ी। जम्मू से कटरा की दूरी ट्रेन से 75 किलोमीटर है। इस पूरे रास्ते में ट्रेन कहीं भी समतल भूमि पर नहीं चलती। पूरे रास्ते में सुरंग और पुलों की भरमार है। जम्मू से कटरा का रेल रूट और दिल्ली मेट्रो में यहाँ कोई अंतर नहीं था। मेट्रो भी कभी सुरंग और कभी पुल से गुजरती है और यहाँ ट्रेन भी वैसे ही चल रही है। अगर कुछ अंतर है तो ट्रेन के बाहर दिखने वाले नज़ारे का। जब ट्रेन सुरंग के अंदर होती तो ऐसा मेट्रो और इस ट्रेन में कोई अंतर नहीं होता क्योकि सुरंग के अंदर मेट्रो में भी अँधेरा और यहाँ भी अँधेरा। पर जब ट्रेन पल के ऊपर से गुजरती तो अलग ही नज़ारा होता है। मेट्रो जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ बिल्डिंग दिखते हैं पर यहाँ ट्रेन जब पुल के ऊपर से गुजरती है तो दोनों तरफ पहाड़, नदी , जंगल और पेड़-पौधे दीखते हैं। कहीं कहीं तो ट्रेन बादलों के बीच चलती है तो उस वक़्त कुछ दिखाई नहीं देता। करीब 2 घंटे के सफर के बाद करीब 9 बजे हम कटरा रेलवे स्टेशन पहुँच गए।
ट्रेन से उतरकर हम दोनों सीधे पहली मंज़िल पर बने आई आई आर सी टी सी के गेस्ट हाउस में गया। यहाँ पहले से ही हमारा डारमेट्री बुक था। रिसेप्शन पर गए और बुकिंग रिसीप्ट दिखाई तो उन्होंने मुझे रूम दे दिया। यहाँ पहले हम कुछ आराम किया फिर नहा धोकर तैयार हुए और नाश्ता किया। सब कुछ करते करते करीब 11 बज चुके थे। अब हम रेलवे स्टेशन में ही बने यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर पर जाकर यात्रा पर्ची बनवाई। यात्रा पर्ची बनवाने के बाद मैं रिसेप्शन पर गया तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाया जो बाणगंगा चेकपोस्ट तक पहुंचा दिया। वहां उतरने के बाद उसने कहा कि जब आप वापस आओ तो फ़ोन कर दीजिये और इसी जगह पर रहिएगा तो हम पहचान लेंगे।
कटरा से भवन के रास्ते में मैं |
हम स्टेशन कैंपस में पहली मंज़िल पर गेस्ट हाउस में गए। रिसेप्शन पर गए और बुकिंग रिसीप्ट दिखाई तो उन्होंने मुझे रूम दे दिया। हम लोग नहा धोकर तैयार हुए और नाश्ता किया। सब कुछ करते करते करीब 12 बज चुके थे। अब हम लोग रेलवे स्टेशन में ही बने यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर पर जाकर यात्रा पर्ची बनवाई। यात्रा पर्ची बनवाने के बाद मैं रिसेप्शन पर गया तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाया जो बाणगंगा चेकपोस्ट तक पहुंचा दिया। वहां उतरने के बाद उसने कहा कि जब आप वापस आओ तो फ़ोन कर दीजिये और इसी जगह पर रहिएगा तो हम पहचान लेंगे।
जब हम यहाँ पहँचे यहाँ करीब 100 लोगों की लाइन लगी हुई थी। एक लाइन में महिला, एक लाइन में वो पुरुष जिनके पास सामान है और एक लाइन में वो पुरुष जीने पास कोई सामान नहीं है। यहाँ प्रत्येक यात्री का सामान चेक किया जाता है। यहाँ से आगे गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि जैसी कोई सामग्री ले जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। सामान चेक करने के बाद यात्री एक्सेस कार्ड जो रजिस्ट्रेशन के समय हर यात्री को दिया जाता उसे चेक किया जाता है। बिना इस कार्ड के कोई भी यात्री आगे नहीं जा सकता। इस कार्ड को आपको पुरे रास्ते संभाल कर रखना होता है। यदि ये कार्ड आपने कहीं गुम कर दिया तो आपको वापस आना पड़ेगा बिना इस कार्ड के आप दर्शन नहीं कर सकते। हमारा भी भी नंबर आया हमने अपना सामान चेक कराया और यात्री कार्ड चेक करवाने के बाद हम अंदर आ गए। इस समय घडी में 11:30 बज चुके थे। यहाँ से चढ़ाई आरम्भ होती है। यहीं पर घोड़े वाले खड़े होते हैं। दोनों तरफ दुकानें भी बहुत सारी हैं। जो लोग पैदल चढ़ाई नहीं कर सकते वो घोड़े से जाते हैं। घोड़े वाला हर आदमी के 600 -700 रूपये लेता है। ये कम ज्यादा भी हो सकता है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो न तो घोड़े पर जा सकते हैं और न ही पैदल जा सकते हैं उन लोगो के लिए पालकी भी यहाँ मिल जाती है, जिसे चार लोग कंधे पर उठा कर ले जाते हैं। पालकी के किराया थोड़ा ज्यादा है पर जो दे सकते हैं उनके लिए ज्यादा या काम का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ये लोग पार्टी आदमी लगभग 2500 से 3000 रूपये लेते हैं।
कटरा से भवन के रास्ते में रास्ते में मृणाल |
हम थोड़ा ही आगे बढे तो मृणाल ने दो डंडे खरीद लिए। यहाँ से आगे मेला जैसा उत्सव था। कुछ लोग आ रहे थे और कुछ लोग जा रहे थे। कुछ घोड़े पर, कुछ पालकी पर कुछ पैदल। कुछ आगे बढ़ने पर बाणगंगा नदी आती है। जहाँ कुछ लोग स्नान कर रहे थे। हम लोगों ने भी हाथ पैर धोया और फिर चल दिए। मन एकदम प्रफुल्लित था। हम बहुत ही उत्साहित थे और आगे बढ़ रहे थे। मौसम भी बहुत अच्छा था। वातावरण में न तो ज्यादा गर्मी थी न ठण्ड बिलकुल सुहाना मौसम था। आसमान में कभी कभी कुछ बादल आ रहे थे और आकर चले जा रहे थे। बादलों को देखकर ये लग रहा था कि अभी नहीं तो रास्ते भर में कहीं न कहीं ये बरसेंगे जरूर।
यहाँ से मृणाल ने मुझसे बैग ले लिया। मैंने उनसे कहा कि अरे नहीं बैग मेरे पास ही ठीक है तो उनका जवाब था कि नहीं आपने 9 दिनों से कुछ खाया नहीं है वो मैं आपको बैग तो ले जाने दूंगा नहीं और मेरे न चाहते ही भी उन्होंने बैग मुझसे लेकर अपने कंधे में टांग लिया। वैसे बैग में कुछ था नहीं 2 -4 सेब और संतरे थे और 1 बोतल पानी था। कुछ आगे बढ़ने के बाद मृणाल ने कहा कि अब कुछ खा लीजिये। फिर हम एक साफ सुथरे और शांत जगह देख कर बैठ गए और केले और सेब खाकर फिर से आगे चल दिए।
रास्ते में हम लोग बार बार प्लान बदल रहे थे कि धीरे धीरे चलेगे और 10 बजे रात तक भवन तक पहुच जायेगें। पर हमारे प्लान से क्या होना था कुछ भी नहीं। होना तो वही तो जो माँ वैष्णो देवी को मंज़ूर था। 9 दिन से बिना कुछ खाये थे फिर भी तन-मन एकदम प्रफुल्लित था, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मुझे थकान हो रही हम हम दोनों तेज़ तेज़ कदमो से चल रहे थे। विडम्बना देखिए प्लान कर रहे थे कि 10 बजे रात तक ऊपर पहुंचना है और जिस गति से हम लोग जा रहे थे उस गति से चलते हुए हम लोग 5 बजे तक ही भवन पर पहुच जायेगे। खैर हम लोग चले जा रहे थे। कही रुकते कही बैठते-सुस्ताते हमारे कदम वैष्णो देवी दरबार की और बढ़ रहे थे।
2.5 किलोमीटर की चढ़ाई तक ही इतनी मात्रा में दुकानें है कि पूछिये मत ऐसा लगेगा जैसे हम किसी बाजार में चल रहे हैं। इसके बाद कुछ दूर के बाद वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा संचालित दुकानें मिलती है। बोर्ड पर तो बहुत चीजों के नाम लिख रहे हैं पर वहां चाय के आलावा और कुछ मिलता नहीं है। जहाँ सब कुछ मिल सके ऐसी दूकान अर्धकुवांरी में मिलती है या फिर यदि आप नए वाले रास्ते से जाएँ तो सीधे वैष्णो देवी के भवन पर ही मिलेगी।
धीरे धीरे चलते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। फिर एक चेक पोस्ट आया यहाँ भी सबको चेक किया जा रहा था। चलते चलते हम वहाँ पहुच गए जहाँ से ये यात्रा दो रास्तों में बंट जाती है। एक रास्ता जो हिमकोटी होकर जाती है वो 5.5 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता जो अर्धकुवांरी होकर जाती है वो 6.5 किलोमीटर है। हम थोड़ी देर यहाँ रुके। इससे पहले हम तीन बार वैष्णो देवी आ चुके थे और हर बार हम अधकुवांरी के रास्ते से ही गए थे। पर इस बार मृणाल ने कहा कि नए रास्ते से चलते हैं क्योकि यदि आप अधकुवारी के रास्ते से जायेगे तो थकान ज्यादा होगी। नया रास्ता थोड़ा काम चढ़ाई वाला वाला है इसलिए इसी रास्ते से चलते हैं। मैंने भी उनकी बात से सहमत हो गया और उसे रास्ते से चले ने लिए तैयार हो गए।
वैसे ही चलते चलते हम 5 बजे के करीब वैष्णो देवी भवन पहुँच गए। वहां प्रसाद की सरकारी दुकाने हैं और कुछ प्राइवेट दुकानें हैं। वही प्रसाद सरकारी दुकान में 40 रूपये की मिलती है और प्राइवेट दुकानों में 100 रूपये की। प्राइवेट दुकान से प्रसाद खरीदने पर वो आपका सारा सामान, जूते , चप्पल आदि रख लेते हैं। सरकारी दुकान से प्रसाद लेने पर आपको श्राइन बोर्ड द्वारा बने लॉकर रूम में सामान रखना पड़ता है जहाँ लंबी लाइन लगी होती है।
यहाँ पहुंचते ही बार बार लाउडस्पीकर की एक आवाज़ सुनने को मिल रही थी कि जो भी भक्तगण दर्शन के लिए जाना चाहते है वो 5:30 से पहले दर्शन की लाइन में लग जाये क्योकि उसके बाद फिर मंदिर 3 घंटे के लिए आरती के बंद कर दिया जायेगा। हम लोग पहले तो जल्दी से लॉकर रूम में गए वहां कोई भीड़ भाड़ नहीं थी। वहाँ काउंटर पर बैठे स्टाफ ने मेरा नाम लिखने के बाद एक धागे में बंधी चाभी दी। उसने कहा कि जो भी लॉकर खाली हो या आपके सामने यदि कोई लॉकर खाली करे तो उसमे सामान रख के ताला लगा कर चाभी को माला की तरह गले में पहन लीजियेगा और लॉकर का नंबर याद कर लीजियेगा नहीं वो जब आप अपना सामान लेने आएंगे तो लॉकर का नंबर याद नहीं रहने पर उस समय आपको बहुत दिक्कत होगी क्योकि सारा लॉकर एक ही जैसा दीखता है और आपने किस लॉकर में अपना सामान रखा है ये पता करना बहुत ही मुश्किल होगा। बहुत इधर उधर देखने के बाद एक खाली लॉकर मिला। हम दोनों ने अपने सामान लॉकर में रखे और ताला लगाया और प्रसाद की दुकान की तरफ चल दिए। यहाँ करीब 40-50 लोगो की लाइन थी।
मेरा नंबर आते आते करीब 5:25 हो चुके थे। प्रसाद लेने के बाद हम दोनों दौड़कर दर्शन के लिए जाने वाले लाइन में लगने के लिए गए। लाइन में हमारे आगे ज्यादा नहीं 4-5 लोग ही थे। हमारी बारी आने पर वहाँ खड़े पुलिस वाले ने अंदर जाने से पहले हमसे रजिस्ट्रेशन कार्ड ले लिया। अब हम दर्शन की लाइन में लगे में लगे थे। हम दोनों के बाद मुश्किल से 5-7 लोग ही हमारे पीछे थे उसके बाद गेट बंद कर दिया गया। हम लोग आगे बढे। एक जगह पर प्रसाद में मिला नारियल जमा करना पड़ता है उसके बदले वो एक टोकन देते हैं दर्शन के बाद वापसी के रस्ते में एक जगह नारियल वापस दे दिया जाता है। नारियल जमा करने के बाद हम दर्शन के लिए गए। मन में एक उत्साह, एक उमंग की लहर दौड़ रही थी। अब तक ठण्ड बहुत हो चुकी थी। अब हम उस चबूतरे पर पहुँच गए थे जहाँ से सारे लोग वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गुफा में जा रहे थे। हम भी गुफा में गया गुफा करीब 50 मीटर लंबी है। गुफा की ऊंचाई बस इतनी ही है कि हम खड़े थे। गुफा के अंदर खड़े होकर हाथ ऊपर नहीं उठा सकते थे।
करीब 20 मिनट हम लोग भी उस पवित्र पिंडी रुपी भगवती देवी के समक्ष खड़े थे। पिंडी के समक्ष जाने पर मुश्किल से 2 सेकंड का टाइम मिलता है पर आज हमे ज्यादा टाइम मिल गया क्योकि आज हमारे पीछे हर बार की तरह इस बार कोई भीड़ नहीं थी। हम ने सिर झुकाया और उस पवित्र पिंडी रूप में विराजमान देवी के दर्शन किये। उसके बाद वहां खड़े लोगो ने कहा कि बस अब दुसरे को भी आने दीजिये। अब हम वहां से गुफा के बने निकास द्वार से बाहर निकले। कुछ देर वह चबूतरे पर रहे। अब हम सीढ़ियां उतरकर नीचे आ गए। नीचे एक काउंटर पर कुछ बहुत छोटे छोटे पैकेट प्रसाद के रूप में वितरित किया जा रहा था। उस प्रसाद में मिश्री के कुछ दाने और एक छोटा सा कॉइन (सिक्का) था। उस सिक्के पर गुफा में पिंडी रूप में विराजमान भगवती की प्रतिमा अंकित थी। ये प्रसाद केवल उन लोगो को दिया जाता है जो वहां दर्शन के लिए जाते हैं। उसके बाद और आगे एक काउंटर पर नारियल दिया जा रहा था। हमने अपना टोकन दिया और नारियल लिया। अब आप ये मत सोचियेगा कि ये वही नारियल होगा जो आपने जमा किया था। जहाँ नारियल जमा किया जाता वहाँ से इसे यहाँ लाया जाता है। और यहाँ वापस दिया जाता है। अब हमें यहाँ से भैरवनाथ के लिए जाना था।
भवन के पास |
यहाँ से चलने के बाद पहले हमे लॉकर रूम यहाँ के प्रसाद को लॉकर में रखना था उसके बाद फिर भैरवनाथ जाना था। उससे पहले हमने परिवार के लोगों को फ़ोन करने का सोचा क्योकि सुबह से किसी से बात हुई नहीं थी। घर में भी सब लोग परेशान होंगे। यहाँ देश के दूसरे राज्यों का मोइबल फ़ोन काम नहीं करता है इसलिए पीसीओ से ही फ़ोन करना पड़ता है। हम दोनों एक पीसीओ के पास गए और सबसे पहले अपनी पत्नी को फ़ोन लगाया। उस समय फ़ोन रिसीव करने वाला मेरा बेटा था। फ़ोन रिसीव करते थे उसने कहा कि पापाजी सुबह से आपने फ़ोन नहीं किया। मम्मी खुद भी परेशान हैं और सुबह से ही रो रही हैं और सब जगह फ़ोन कर चुकी हैं कि सुबह से फ़ोन नहीं आया। उसके बाद मैंने अपनी मम्मी को फ़ोन किया जो बिहार में रहते हैं तो उधर से भी यही जवाब मिला कि पहले दिल्ली फ़ोन कर लो। जिसे भी मैं फ़ोन कर रहा था सबसे एक ही जवाब मिल रहा था कि पहले पत्नी से बात कर लो। अब पता नहीं क्यों इस बार वो क्यों परेशान हो गयी। इस बार तो एक व्यक्ति साथ में भी है पर पिछले साल तो मैं अकेले ही आया था। शायद ये वजह थी कि इस बार हमने पहले बार नवरात्रों का व्रत रखा था और आज बिना कुछ खाये पिए 9 दिन हो गए थे। खैर छोड़िये इन बातों को। अब आगे के विवरण सुनिये।
भवन के पास |
घडी में शाम के 6:30 बज चुके थे। अब हमें यहाँ से भैरवनाथ जाना था। हम लॉकर रूम में गए यहाँ का जो प्रसाद था उसे रखा और फिर भैरवनाथ की और चल दिए। करीब 8 बजे हम भैरवनाथ पहुँच गए। यहाँ भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद हम 8:30 बजे वापस चल दिए। पता नहीं कैसे और क्यों जिस रास्ते पर मुझे करीब एक घंटे लगता था आज केवल और केवल 10 मिनट लगे और हम वापस फिर से वैष्णो देवी भवन पर आ गए। यहाँ एक दो फोटो खिंचे। उसके बाद लॉकर रूम से सामान निकल और वापस कटरा की और चल दिए। इस वक़्त 9:30 बजे थे।
नीचे उतरते हुए भी कदम तेज़ ही चल रहे थे। मुझे ऐसा नहीं लग रहा था कि आज मेरी फास्टिंग का 9 दिन बीत चुके हैं। हां एक बार और, इस बार नवरात्री 10 दिनों का था और विजयादशमी 11वें दिन था। गिनती के हिसाब से 9 दिन बीत चुके थे पर तिथि के हिसाब से 8 दिन ही बीता था। नीचे उतरते हुए मृणाल तेज़ तेज़ उतरते और कुछ दूर जाकर मेरा इंतज़ार करते, फिर मैं जब उनके पास पहुंचता तो फिर से वो तेज़ तेज़ चलना आरंभ करते और फिर कुछ दूर जाने पर फिर से वही इंतज़ार। इसी तरह हम करीब रात में 1:30 बजे नीचे उतर गए। यहाँ आकर गेस्ट हाउस में गाड़ी के लिए फ़ोन करना था। रात होने के कारण कोई पीसीओ नहीं मिल रहा था। मैंने वही वाणगंगा चेकपोस्ट पर ड्यूटी पर खड़े पुलिसवाले से कहा कि मुझे एक फ़ोन करना है मेरा मोबाइल काम नहीं कर रहा और कोई पीसीओ नहीं मिल रहा तो उसने मुझे बहुत सारे सवाल पूछ लिए। जैसे कहाँ से आये है, कहाँ फ़ोन करेगे आदि आदि। मैंने उसे बताया कि रेलवे स्टेशन फ़ोन करना है। रेलवे स्टेशन का नाम सुनते ही वो चौक गया कि रेलवे स्टेशन क्यों फ़ोन करोगे। मैंने उसे बताया की वही IRCTC गेस्ट हाउस में मेरा रूम बुक है और फ़ोन करने पर वो गाड़ी भेजेगे। पूरे तसल्ली हो जाने के बाद उसने अपना मोबाइल निकाल कर मुझे दे दिया। मैंने फ़ोन किया और उनको धन्यवाद किया। उसके बाद मृणाल भी धन्यवाद कहने गए। फ़ोन करने के करीब 20 मिनट बाद गाड़ी आ गयी। हम लोग गाड़ी में बैठ कर स्टेशन आ गए। घडी में करीब 2:30 बज चुके थे। यहाँ आते ही हम लोग सो गए।
तीसरा दिन और चौथा दिन
गेस्ट हाउस पहुँच कर हम अपने रूम में गए और वहाँ जाकर सो गए। दिन में थोड़ा बहुत शॉपिंग किया। हमारी टिकट शाम को थी जो कटरा से शाम 7:10 बजे खुलती है। समय होने पर हम हम प्लेटफार्म पर आये तो देखा कि ट्रेन पहले से लगी हुई थी। हम अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए। ट्रेन अपने निर्धारित समय से खुली। कुछ देर में हम लोग सो गए। थकान इतनी थी कि ट्रेन कब उधमपुर, कब जम्मू या कब किसी और स्टेशन पहुंची पता नहीं चला। 5 बजे जब हमारी नींद खुली तो हम पानीपत पहुँच चुके थे। 2 घंटे बाद 7 बजे हम नई दिल्ली स्टेशन पहुँच गए। ट्रेन से उतरे स्टेशन से बाहर आकर त्रि-चक्रीय वाहन (ऑटो) बुक किया और अपने अपने घर आ गए।
कटरा स्टेशन के बाहर |
सिन्हा जी,यात्रा विवरण तो बहुत शानदार लिखा है ,लेकिन सुन्दर रास्तों और नजरों की फोटो की कमी लगी । हम लोग भी इसी वर्ष 11 अप्रैल को माँ वैष्णो देवी के दर्शन करके लौटे पूरी यात्रा की याद ताजा हो गयी । जय माता दी
ReplyDeletewww.bebkoof.blogspot.com
Deleteआपने पढ़ा और एक नेक सुझाव दिया उसके लिए धन्यवाद, आज ही हम इस पोस्ट में कुछ अच्छे फोटोग्राफ डालते हैं
सिन्हा जी,यात्रा विवरण तो बहुत शानदार लिखा है ,लेकिन सुन्दर रास्तों और नजरों की फोटो की कमी लगी । हम लोग भी इसी वर्ष 11 अप्रैल को माँ वैष्णो देवी के दर्शन करके लौटे पूरी यात्रा की याद ताजा हो गयी । जय माता दी
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Deleteआपने पढ़ा और एक नेक सुझाव दिया उसके लिए धन्यवाद, आज ही हम इस पोस्ट में कुछ अच्छे फोटोग्राफ डालते हैं
आपका लिखा पढ़कर आनन्द तो आया ही साथ में काफी मार्गदर्शन भी मिला। चूंकि मैं सपरिवार नववर्ष पर वैष्णो देवी जा रहा हूँ सो दो चार बार और इस यात्रा वृतांत को पढूंगा। आपसे बात तो होती ही रहती है अतः शुक्रिया तो निजी रूप से ही कर दूंगा।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद जी मेरे ब्लाॅग पर आने के लिए, आते रहिएगा ब्लाॅग पर, आपको यात्राा की अग्रिम शुभकामनाएं विक्की जी, आप चाहे तो वैष्णो देवी यात्राा का दूसरा पोस्ट भी पढ़ सकते हैं, वैष्णों देवी यात्राा के चार पोस्ट हैं। शुक्रिया की कोई बात नहीं जी, आपने पढ़ा और कमेंट किया ये क्या कम है मेरे लिए
Deleteमैंने अभी देखा कि आपने वैष्णो देवी यात्रा पर और भी संस्मरण लिखे हैं।पढ़कर कमेंट करूँगा।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद जी। जी हां विक्की जी, वैष्णों देवी पर हमने चार संस्मरण लिखे हैंं, दो संस्मरण 2014 के तथा 2015 व 2016 के एक-एक संस्मरण हैं।
Deleteअहाहा ! अपनी वैष्णो देवी यात्रा की याद हो आई ! यहां जाना हमेशा ही अच्छा लगता है ! जय माता दी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार, वैष्णों देवी की यात्रा हम साल नवरात्राों में करते हैं। इस साल भी होकर आए हैं।
DeleteSuperb post, we enjoyed each and everything as per written in your post. Thank you for this article because it’s really informative, I Really like this site. We are also providing Taxi Services in India.
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी
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