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Saturday, January 19, 2019

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)




मेरे पड़ोस में एक शम्भू दयाल नामक एक व्यक्ति रहते हैं। एक बार अचानक ही उन्हें कहीं जाना पड़ गया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक तत्काल टिकट का इंतजाम किया, वो भी वेटिंग हो गई, लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और टिकट कंफर्म भी हो गई। वो यात्रा के लिए घर से निकले और स्टेशन पहुंच गए। स्टेशन पर जाने पर पता चला कि उन्होंने जिस गाड़ी का टिकट लिया उससे पहले की दो ट्रेन और बाद की तीन ट्रेन कैंसिल है। ट्रेन कैंसिल होने का कारण भी ये था कि जो ट्रेनें यहां से जानी थी वो आई ही नहीं थी क्योंकि जहां से वो आने वाली थी वो किसी राजनीतिक पार्टी के देश या राज्य बंद के कारण रास्ते में ही खड़ी थी। मतलब कुल मिलाकर यह हुआ कि उन सभी ट्रेनों की जितनी सवारियां हैं उनमें से अधिकतर सवारियां जो भीड़ का सामना करने का हौसला रखती है, वो इसी में सवार होगी।

वैसे शम्भू जी को बहुत ही बड़ी बीमारी है। उनकी आदत है कि वो सभी सवारियों के चढ़ने के बाद ही ट्रेन में सवार होते हैं, लेकिन उस दिन पता नहंी कैसे उनके दिमाग की बत्ती जल गई थी और पहले ही ट्रेन में धक्का-मुक्की करके प्रवेश कर गए थे और अपनी निर्धारित सीट पर कब्जा भी कर लिया था। कुछ ही देर में जितनी भी सवारियां उस ट्रेन में चढ़ सकती थी चढ़ गई। सीट, फर्श, दरवाजे, खिड़की और यहां तक कि ट्रेन का बाथरूम भी सवारियों से भर चुका था। अजी बाथरूम तो छोडि़ए कुछ सवारियों तो दरवाजे पर भी लटकी हुई थी। हालात ऐसे थे कि जिनके टिकट थे वो ट्रेन में नहीं चढ़ पाए और बिना टिकट वाले आराम से डब्बे के अंदर कूद-फांद में लगे हुए थे।

ट्रेन का समय हुआ लेकिन ट्रेन स्टेशन पर ही खड़ी रही। लोग अपनी अपनी बातें बनाना आरंभ कर दिए कि यही कारण है कि ट्रेनें लेट होती हैं, जब सब कुछ सही है तो भी गाड़ी को स्टेशन पर रोक कर रखा जाता है, और कहा जाता है कि तकनीकी खराबी के कारण ट्रेन लेट होती है। ये रेलवे वाले अपनी गलती मानते नहीं और लाखों बहाने बना लेते हैं। किसी को कुछ पता नहीं था कि ट्रेन अभी तक यहीं खड़ी क्यों है। ट्रेन के स्टेशन से चलने के समय से करीब 30 मिनट ज्यादा हो चुके थे लेकिन ट्रेन के आगे बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी।

लोगों की बातों के बीच में ही एक और वाकया हुआ। कुछ रेलवे पुलिस वाले आए और दरवाजे पर लटके लोगों को, बाथरूम में घुसे लोगों को पकड़ पकड़ कर जबरदस्ती उतारने लगे। कारण पूछने पर बताया कि ट्रेन के ड्राईवर ने स्टेशन मास्टर को लिखित रूप में दे दिया है कि इतनी ज्यादा सवारी में हम ट्रेन नहीं चलाएंगे इसलिए लोगों को उतारा जा रहा है, क्योंकि जब तक सवारी कम नहीं होगी, ड्राईवर आएगा ही नहीं वो अपने कक्ष में जाकर बैठ गया है। बहुत मुश्किल से सैकड़ों पुलिस वाले ने बहुत से सवारियों को उतारा और डंडा लेकर खड़े हो गए कि कोई दुबारा चढ़े नहीं। फिर ड्राइवर बाबू आए और ट्रेन जी सीटी बजाकर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे।

अब बात करते हैं इस भीड़ में पीस रहे शम्भू दयाल जी की। वो जिस सीट पर बैठे थे उस सीट पर तीन के बदले 6 लोग और मतलब कुल सात लोगों ने कब्जा जमा रखा था। वो बेचारे उन लोगों की भीड़ में दबे हुए थे, पर कुछ बोल नहीं रहे थे, क्योंकि उनको कितना भी दिक्कत हो जल्दी मुंह खोलते नहीं है, लेकिन जब खोलते हैं तो बिना काटे बंद भी नहीं करते हैं। ट्रेन स्टेशन से छूट चुकी थी और बीच के स्टेशनों पर न रुकने वाली ट्रेन होते हुए भी भारी भीड़ के दबाव में वो स्पीड पकड़ नहीं पा रही थी। खैर जो भी हो ट्रेन चली जा रही थी।

कुछ मिनट में मिश्रा जी और दुबे जी टाइप के कुछ लागों ने शम्भू दयाल जी को पूछा कि आपकी सीट कौन सी है। अब शम्भू जी अवाक् बोलें तो क्या बोलें। उनकी ही सीट पर लोग बैठे हुए हैं और उनसे ही पूछ रहे हैं कि आपकी सीट कौन सी है। शम्भू जी बिना कोई जवाब दिए चुपचाप बैठे रहे और ईधर उधर देखने लगे। तभी फिर से मिश्रा जी ने उनको हिलाते हुए कहा कि भाई साहब आपसे ही पूछ रहे हैं कौन सी सीट आपकी है। अब बारी शम्भू जी की थी। उन्होंने बहुत ही मासूमियत के साथ कहा कि भाई साहब हमारी टिकट तो वेटिंग हैं। अब मिश्रा जी ने कहा कि ठीक है आपकी वेटिंग है तो कहीं और देख लीजिए, हम यहां खुद ही कई लोग हैं। बेचारे शम्भू जी गिड़गिड़ाने लगे कि जब सोने का समय होगा तो हम हट जाएंगे, अभी बैठने दीजिए, लेकिन मिश्रा जी शम्भू जी को हटाने का कसम खाकर शायद घर से ही आए थे।

उन्होंने शम्भू जी को कड़ी हिदायत देते हुए कहा कि ये सीट छोडि़ए वरना हम टीटी को बुलाएंगे। शम्भू जी भी अड़ गए और कहने लगे कि आपकी कौन सी सीट है तो मिश्रा जी बोले कि हमारी नीचे और ऊपर वाली सीट है। शम्भू जी बेचारे बोले कि ठीक है मैं थोड़े से बैठता हूं आपको दिक्कत नहीं दूंगा, पर मिश्रा जी नहीं माने और उनको खड़ा कर दिए। अब शम्भू जी जैसे ही खड़े हुए उनको भी गुस्सा आया। वे बीच वाली सीट को खोलने लगे कि ठीक है आप ऊपर और नीचे का सीट रखिए हम बीच वाली सीट पर तब तक लेट जाते हैं। मिश्रा जी बोले कि वो जिनकी सीट है वो आएंगे आप क्यों उसे खोल रहे हैं। अब शम्भू जी का पारा गर्म। उन्होंने कहा कि इस बीच वाली सीट का मालिक मैं ही हूं और अब ये सीट लगेगी तो लगेगी और कोई रोक नहीं सकता। लोगों ने समय का हवाला दिया कि अभी तो सात ही बजे हैं नौ बजे लगा लीजिएगा। खैर शम्भू जी का गुस्सा शांत हुआ और उसके बाद वे बहुत ही चौड़े होकर सीना तान कर बैठ गए। बेचारे मिश्रा जी उनसे नजरें नहीं मिला रहे थे।

समय बीता और नौ बज गए। शम्भू जी ने बीच का बर्थ लगाया और लगाते हुए उन्होंने बिना किसी को संबोधित करते हुए कहा कि गंतव्य तक पहुंचने का ट्रेन का समय सुबह सात बजे है और इस हिसाब से ट्रेन के गंतव्य तक पहुंचने के करीब एक-डेढ़ घंटा पहले इस बर्थ को मैं नीचे गिराऊंगा। अब आप लोग विनती कीजिए कि ट्रेन अपने गंतव्य तक सही समय से पहुंच जाए, वरना जितना देर ट्रेन को होगा उससे सौ गुना तकलीफ और लोगों को होगा। जब शम्भू जी ये बात बोल रहे थे तो कुछ लोग हंस रहे थे कि काहे अपने आप में आप ऐसा बोल रहे हैं, तब शम्भू जी ने कहा था हमार नाम शम्भू दयाल है, अब आप सबका सफर हमारी ही दया से पूरा होगा, बस विनती कीजिए कि ट्रेन समय से पहुंच जाए।

अब जैसा कि ट्रेन अपने समय से करीब 40 मिनट बाद आरंभिक स्टेशन से चली थी तो और ज्यादा लेट होना तो तय था, लेकिन नाॅन-स्टाॅप ट्रेन होने के कारण उम्मीद थी कि ट्रेन समय से पहुंच जाएगी, लेकिन होना तो कुछ और ही था। ट्रेन अपनी कुल दूरी का आधे से भी कम सफर तय किया था और एक बड़े स्टेशन से गुजरने के बाद ट्रेन अचानक झटके लेते हुए रुक गई। सभी की नींद खुली और यही लगा कि सिग्नल रेड होगा तो ट्रेन रुकी हुई है। समय बीतता रहा और पहले आधा घंटा, फिर एक घंटा, फिर दो घंटा बीता। लोगों का सब्र टूटा तो पता करने पर मालूम हुआ कि इंजन जी ने धोखा दे दिया और उनको दौरे पड़े हैं इसलिए रुक गए हैं। करीब चार घंटे गाड़ी वहीं खड़ी रही फिर एक दूसरी इंजन मंगाकर ट्रेन में जोड़कर आगे के लिए रवाना किया गया। कुछ देर बाद सुबह हुई लोग जागने लगे। नीचे सोए मिश्रा जी जगे और उन्होंने शम्भू दयाल जी को जगाया।

शम्भू दयाल जी तो रात से ही मूड बना लिए थे कि मिश्रा जी को अच्छे से मिश्री खिलाएंगे। मिश्रा जी की आवाज सुनते ही शम्भू जी ने कहा कि भाई साहब जब ये ट्रेन अपने गंतव्य पहुंचने की स्थिति में हो तो जगा दीजिएगा। मिश्रा जी ने टीटी को बुलाने की फिर धमकी पर शम्भू जी टस से मस नहीं हुए और बर्थ पर सोए ही रहे। समय बीतता रहा और ट्रेन थोड़ा और थोड़ा और करते करते करीब आठ घंटे देर हो गई। उसके बाद आया गंतव्य से पहले वाला स्टेशन तब शम्भू जी गर्व की अनुभूति लिए हुए अपने बर्थ से मुस्कुराते हुए उतरे और मिश्रा जी को संबोधित किया कि भाई साहब कैसी रही आपकी ये यात्रा। 

मिश्रा जी भी क्या बोलते। बड़े ही मायूसी के साथ जवाब दिया कि भाई साहब बहुत अच्छी यात्रा रही हमारी, इस यात्रा को हम कभी नहीं भूलेंगे। तब शम्भू जी ने मिश्रा जी को कहा कि अगर कोई आपकी सीट पर दस मिनट के लिए बैठ भी जाए और उसकी टिकट नहीं भी तो कुछ देर उसे बैठने दें। आप एक कंफर्म के साथ चार वेटिंग लटकाकर ले आएंगे तो आपको दिक्कत नहीं होगी, लेकिन कोई अगर अनजान आदमी पांच मिनट भी बैठ जाए तो ऐसा करेंगे जैसे ये ट्रेन आपकी है और सामने वाला व्यक्ति इस गाड़ी को उठाकर अपने घर ले जाने आया है। अगर आप कल शाम हमसे नहीं उलझते तो शायद आपको ये दिक्कत नहीं होती और भला हो रेलवे वालों का जो शम्भू जी की मनपसंद सीट नीचे वाली या ऊपर वाली होती है लेकिन इस बार उनको बीच वाली सीट मिल गई। तो आप लोग भी एक बार बोलिए शम्भू जी और मिश्रा जी की जय।

नोटः इस कहानी का संबंध एक सच्ची घटना से है। पात्रों के नाम काल्पनिक हैं। इस लेख में लगे हुए फोटो का इस यात्रा से कोई संबंध नहीं है।

2 comments:

  1. sir apne bahut achhi post likhi hai

    mai bhi hindi blogger huan

    mai mumbai ke bareme likta huan

    aap please mere blog ko visit kare
    https://www.mumbaiweather.info/

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    1. ब्लाॅग पर आने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। आज देखता हूं आपका ब्लाॅग।

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