Wednesday, November 8, 2017

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली 




जब हम किसी यात्रा पर अपने घर से निकलते हैं तो उसका रोमांच अलग होता है लेकिन यात्रा पूरी करके वापस लौटने पर वो रोमांच नहीं रह जाता तो जाते समय होता है। पर हमारी इस यात्रा में घर से निकलकर यात्रा पूरी करके वापस आने तक पूरी तरह रोमांच बना रहा। चार दिन की इस यात्रा में हमने दिल्ली से हरिद्वार तक की यात्रा ट्रेन से तय किया। ट्रेन से सफर करते हुए हमें हरिद्वार में उतरना था पर नींद नहीं खुली और हम देहरादून के करीब पहुंच गए और ऐसे ही बीच रास्ते में ट्रेन रुकने पर वहीं उतर कर पैदल ही निकल पड़े। हरिद्वार पहुंचने के बाद हम उखीमठ के लिए निकले पर परिस्थितियों ने हमें उखीमठ के बदले गुप्तकाशी पहुंचने पर मजबूर कर दिया। गुप्तकाशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के पश्चात हम उखीमठ में स्थित प्रसिद्ध कालीपीठ पहुंचे और फिर उसके बाद चोपता गए। चोपता से भारी बरसात में चढ़ाई करके तुंगनाथ पहुंचे और यहां भी परिस्थितियों ने कुछ और ही बाधा में डाला। उसके बाद पहले तुंगनाथ से चंद्रशिला की तरफ निकले जहां रास्ता भटककर हम कहीं और पहुंचे और सकुशल वापस भी आए। अगले दिन एक बार फिर तुंगनाथ से चंद्रशिला देखने चले और इस बार सकुशल पहुंचकर एक अद्वितीय अनुभव लेने के बाद वापस तुंगनाथ मंदिर आकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन और जलाभिषेक के पश्चात वापस चोपता आ गए। वापसी का हमारा सफर तो तुंगनाथ मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन के पश्चात ही शुरू हो गया था। बरसात में ही हम तुंगनाथ से चोपता आए। तुंगनाथ से चोपता आकर कुछ देर के विश्राम के पश्चात हमारा कारवां हरिद्वार की तरफ चलने को तैयार था।


तुंगनाथ जी से चोपता वापस आते-आते साढ़े नौ बज चुके थे। आधा घंटे हम लोगों ने चाय-नाश्ते में लगा दिया। दस बज चुके थे और हम जल्दी से जल्दी हरिद्वार पहुंच जाना चाहते थे। चोपता से हरिद्वार तक पहुंचने के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं है। यहां से हरिद्वार जाने के लिए या तो उखीमठ या गोपेश्वर जाना होता है जहां से हरिद्वार की बसें मिलती है। गोपेश्वर की अपेक्षा उखीमठ होते हुए हरिद्वार पहुंचना ज्यादा आसान है। इस मौसम में यहां आवाजाही कम होती है और इसी कारण यहां गाडि़यों की भी बहुत कमी थी। वो तो एक बढि़या बात ये हुई थी एक जीप वाला 3 व्यक्तियों को उखीमठ से चोपता लेकर आया था और हम लोगों के कारण ही यहां रुका हुआ था कि कुछ देर से ही हम लोग तुंगनाथ से वापस चोपता तो आएंगे ही। अब आप पूछेंगे कि उसे कैसे पता लगा कि हम तुंगनाथ गए हैं और वापस आने वाले हैं, तो ये काम हमारे होटल वाले ने कर दिया था, जिसका कमरा हमने कल किराए पर लिया था। होटल वाले ने ही जीप वाले को बता दिया था कि 6 लोग कल ही हमारे यहां ठहरे हैं और तुंगनाथ गए हैं जो अभी तक वापस नहीं आए हैं, कुछ देर में वो लोग आएंगे तो उखीमठ या गोपेश्वर जाएंगे। इसीलिए हमारे तुंगनाथ से चोपता पहुंचने के समय से ही जीप वाला हमारे पीछे पड़ा था। हम सब उसे घुड़की देकर भगा रहे थे पर वो मान नहीं रहा था और पीछे लगा था। जब हम यहां आए तब से पीछे लगा और अभी तब से करीब 45 मिनट हो चुके थे पर वो हमारे साथ-साथ ही घूम रहा था कि कहीं न कहीं तो जरूर जाएंगे।

जब हम लोग अपनी सारी तैयारी कर चुके और उस जीप वाले को उखीमठ की तरफ चलने के लिए बोला तो उसने 800 रुपए मांगे। इतने पैसे मांगने पर हमने उसे मना कर दिया और कहा कि भाई हम दूसरी गाड़ी से चले जाएंगे आप हमारा पीछा छोड़ो। मेरी इस बात पर उसने हमें बताया कि यहां से न तो आपको दूसरी गाड़ी मिलेगी और न ही मुझे कोई और सवारी। आपको भी गाड़ी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ेगा और मुझे भी सवारी के लिए इंतजार करेगा। कुछ देर में हो सकता है कि आपको तो गाड़ी मिल जाए क्योंकि क्या पता कोई गाड़ी कुछ लोगों को लेकर आए तो वो आपको वापस ले जाएगा पर मुझे कोई और सवारी नहीं मिलगी क्योंकि जब सुबह से आज यहां काई आया ही नहीं तो वापस कौन जाएगा। अतः केवल आप लोग ही हो जिनसे मुझे कुछ कमाई हो सकती है। अंततः 600 रुपए में उखीमठ तक पहुंचाने की बात तय हुई। सब तय हो जाने के बाद हम सबने अपना सामान गाड़ी में रखा और आराम से बैठ गए। समय भी भागता जा रहा था। घड़ी देखा तो साढ़े दस बज चुके थे।

हम लोग गाड़ी में बैठे और वीर सिंह जी जो जीप के ड्राइवर थे, उन्होंने गाड़ी स्टार्ट की और उखीमठ की तरफ चल दिए। हमारी एक गलत आदत है जिसके कारण कुछ लोग मुझसे उब जाते हैं, पर कुछ लोग इस आदत के कारण मुझसे घुल मिल जाते हैं। अपनी उसी गलत आदत के अनुसार हमने ड्राइवर बाबू से बात करना आरंभ कर दिया। सबसे पहले हमने उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम वीर सिंह बताया। उसके बाद हमारी और उनकी राम कहानी शुरू हुई। अपने घर से लेकर अपने परिवार तक उसने सब कुछ बताया और जब वो बता रहे हों तो हम जैसा वाचाल आदमी कैसे चुप रह सकता है, हमने भी आदि से अंत तक की सारी राम कहानी उनको बता दिया। वैसे वीर सिंह जी बहुत ही अच्छे आदमी निकले। गाड़ी तो हमने रिजर्व करते समय बस यही सोचा था मैं एक गाड़ी रिजर्व कर रहा हूं और ड्राइवर कुछ देर में हमें अपनी मंजिल तक पहुंचा देगा और हम पैसे देकर उनसे विदा हो जाएंगे। पर यहां तो सब कुछ अपनेपन जैसा हो गया।

चोपता से उखीमठ तक के डेढ़ घंटे के सफर में वीर सिंह जी रास्ते में मिलने वाले हर सड़क, हर गली के बारे में हमें विस्तार से बताते चल रहे थे। पूरे रास्ते में पड़ने वाली हर चीज की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जानकारी उन्होंने हमें दिया। चोपता से उखीमठ के रास्ते में ही उनका गांव है, और गांव से होकर गुजरते हुए उन्होंने हम लोगों को अपने घर चलने का न्योता दिया, जिसे हम कबूल नहीं कर पाए। हम लोगों को अपने घर ले जाने का जितना मन उनका था उससे ज्यादा हमारा मन भी उनके घर जाने के लिए उत्सुक था, लेकिन समय हमें इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। अब उनके घर जाने पर एक घंटे तो समय लग ही जाता और हमें शाम तक हरिद्वार पहुंचना जरूरी था। अगर हम उनके यहां चले जाते तो शायद हमारा हरिद्वार पहुंचना असंभव होता, इसलिए हमने उनसे फिर कभी आने पर उनके घर जाकर कुछ समय बिताने की बात की। बातों बातों में उन्होंने हमारा नम्बर लिया और अपना नम्बर भी दिया कि साथ ही ये भी हिदायत दे डाली कि अगर फिर से कभी ईधर आना हो तो एक बार सेवा का मौका अवश्य दीजिएगा।

सुबह से तेज होती बारिश अभी भी जारी थी। बरसात ने भी जैसे सोच ही रखा था कि चाहे कुछ भी हो जाए हम तुम्हारा पीछा वहीं जाकर छोड़ेंगे जहां से पकड़ा था। खैर हम चलते रहे और चोपता से उखीमठ तक का डेढ़ घंटे का सफर वीर सिंह जी से बातें करते हुए कब पूरा हो गया कुछ पता ही नहीं चला। ठीक बारह बजे हम उखीामठ पहुंच गए। जिस जगह पर वीर सिंह जी ने हमें अपने जीप से उतारा, ठीक वहीं पर रुद्रप्रयाग के लिए एक जीप खड़ी थी और कुछ लोग उसमें पहले से ही बैठे हुए थे। हम सब भी उसी जीप में बैठ गए। हम लोगों के बैठने के बाद उस जीप में किसी और के बैठने के लिए कोई जगह नहीं बची। है। अब जब सारी सीटें भर चुकी हो तो गाड़ी को वहां खड़ा करके समय व्यर्थ में जाया न करते हुए ड्राइवर सुनीत जी ने गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़े रुद्रप्रयाग की तरफ। संयोगवश यहां भी हमें ड्राइवर के बगल वाली सीट मिल गई, मतलब इस ड्राइवर से भी ज्यादा नहीं तो थोड़ी बहुत जानकारी तो मिल ही सकती है। उखीमठ से रुद्रप्रयाग के हमारे सारथी सुनीत जी का व्यवहार भी बहुत अच्छा रहा और इन्होंने भी वीर सिंह की तरह रास्ते में पड़ने वाले हर गांव और कस्बे के बारें बहुत अच्छी जानकारी दी।

उखीमठ से रुद्रप्रयाग की तरफ चलने पर अभी उखीमठ बाजार से निकलकर कुछ ही दूर गए थे कि सहसा सुनीत जी ने गाड़ी में ब्रेक लगाया। नजर उठाकर देखा तो करीब 200 मीटर आगे तक गाडि़यों का काफिला खड़ा था। हम गाड़ी से उतरकर स्थिति को जानने के लिए आगे गए तो देखा कि पहाड़ का मलबा सड़क पर आ गया है, जिसे हटाने का काम चल रहा था। करीब 10 मिनट में मलबा हटा दिया गया और सड़क गाडि़यों के आवाजाही के लायक हो गई। यहां से आगे बढ़ने पर करीब 15 से 20 मिनट में हम कुण्ड पहुंच गए। उखीमठ से आने पर सीधे चले जाने वाली सड़क अगस्त्य मुनि होते हुए रुद्रप्रयाग पहुंच जाती है और दाएं मुड़कर नदी को पार करने वाली सड़क गुप्तकाशी, फाटा होते हुए सोनप्रयाग चली जाती है और आगे जाकर गौरीकुण्ड में समाप्त होती है।

कुण्ड से आगे बढ़ने पर कुछ और स्थानों से गुजरते हुए हम रुद्रप्रयाग की तरफ बढ़े जा रहे थे। इसी दौरान हमने सुनीत जी से कार्तिकस्वामी के रास्ते के बारे में पता किया तो उन्होंने बताया कि आगे जाकर एक कस्बा आता है जहां से एक सड़क कनकचाौरी तक जाती है। कनकचाौरी से कार्तिकस्वामी का रास्ता पैदल चढ़ाई वाला है। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि कनकचाौरी जाने के लिए कोई सार्वजनिक परिवहन सेवा उपलब्ध नहीं है। वहां जाने के लिए आपको या तो अपनी गाड़ी से जाना होगा या रिजर्व करके जाना होगा। रुद्रप्रयाग से कनकचाौरी तक जाने के लिए बस भी उपलब्ध है जो रुद्रप्रयाग से सुबह में ही है और दोपहर बाद कनकचाौरी से उसी बस की वापसी है तथा इसके अलावा वहां जाने के लिए और कोई बस उपलब्ध नहीं है। हम सब चले जा रहे थे और सुबह से तेज रफ्तार से हो रही अब धीरे धीरे सुस्त पड़ने लगी थी जो रुद्रप्रयाग बाईपास तक पहुंचते पहुंचते पूरी तरह बंद हो गई। यात्रा के शुरुआत में यही वो स्थान था, थोड़ा आगे या पीछे, जहां से बरसात ने हमारा साथ निभाना आरंभ किया था और लगभग यहीं आकर उसने हमारा साथ भी छोड़ा और इस तरह हमारा सातवां साथी हमसे विदा हो गया। अब यहां से हरिद्वार तक के सफर में हम केवल छः लोग ही होंगे। ऐसे ही चलते हुए करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद ठीक दो बजे हम रुद्रप्रयाग पहुंच गए।

रुद्रप्रयाग में हरिद्वार जाने के लिए कोई बस उस समय उपलब्ध नहीं थी, लेकिन संयोगवश एक जीप मिल गई। जीप मिलते ही हम सब खुश हो गए कि जीप हमें बस वाले से कम समय में हरिद्वार पहुंचा देगी लेकिन होना तो कुछ और ही था। दो बजे के करीब हम जीप पर बैठ गए। हर पांच मिनट में हम जीप वाले को चलने के बारे में पूछते तो वो पांच मिनट, पांच मिनट करके टालता जा रहा था और इसी तरह करीब 2ः45 बज गए। अंततः थक-हार कर हम भी लड़ने के मूड में आ गए और जीप वाले से चलने के लिए बोला तो उसने कहा कि जब तक सवारी भर नहीं जाती तब तक हम नहीं जाएंगे। मैंने भी उसे खूब खरी-खोटी सुनाया कि करीब 40 मिनट पहले हम छः लोग तुम्हारी जीप में बैठे हैं और उस समय से तुमको एक भी अतिरिक्त सवारी हरिद्वार जाने के लिए नहीं मिली है तो क्या खाक जीप चलाओगे। 40 मिनट से हम तुम्हारी जीप में बैठे हैं और हमारी सांसें अटकी हुई है कि हम ट्रेन भी पकड़ पाएंगे या नहीं इसका भी नहीं पता और तुम टाल-मटोल करने में लगे हो। अब मुझे वैसे भी तुम्हारी जीप से नहीं जाना हमारा सामान उतारो हम किसी और गाड़ी से चले जाएंगे। जीप से सामन उतारने की बात सुनकर उसने बड़े ही अनमने ढंगे से उसने ऊपर से हमारा सामान उतारा और साथ ही उसने ये भी कहा कि अब कोई भी गाड़ी आपको हरिद्वार के लिए नहीं मिलेगी और एक मात्र चीज जो आपको हरिद्वार तक पहुंचा सकती है वो है गाड़ी रिजर्व करना। मैंने भी उसे कहा कि भाई हम तो हरिद्वार रिजर्व करके भी पहुंच जाएंगे पर तुम अपनी देख लो जो एक घंटे में एक सवारी नहीं ला सके, तो तुम्हारी क्या औकात है दूसरे को कुछ बोलने की।

अब जीप से अपना सामान लेकर हम बस स्टैंड की तरफ गए जहां श्रीनगर जाने के लिए एक बस खड़ी थी। हम सब उसी बस में बैठ गए कि हरिद्वार के बस का इंतजार न करते हुए हम श्रीनगर तक पहुंच जाते हैं क्योंकि हमें ये तो मालूम था और देखा भी था कि श्रीनगर से हरिद्वार की बहुत सारी बसें मिलती है। ठीक तीन बजे बस रुद्रप्रयाग से चली और करीब एक घंटे के सफर के बाद चार बजे के आस-पास हम श्रीनगर पहुंच गए। श्रीनगर में बस से उतरते ही एक हरिद्वार की बस में बैठ गया। ठीक 15 मिनट बाद 4ः15 बजे बस हरिद्वार के लिए चल पड़ी। कंडक्टर जब पैसे लेने आया तो वो हरिद्वार के पैसे न लेकर ऋषिकेश तक के ही पैसे ले रहा था। पूछने पर कहा कि हम तो ऋषिकेश तक ही जाएंगे और वहां से आगे आपको दूसरी बस से हरिद्वार जाना होगा। मैंने और बस में बैठे अन्य यात्रियों ने उससे कुछ सवाल जवाब किया उसका निष्कर्ष ये निकला कि ऋषिकेश पहुंचने पर जब तक वो सबको हरिद्वार जाने वाली बस में न बैठा दे, कोई भी आदमी इस बस से नहीं उतरेगा। उसने भी इस बात को स्वीकार किया कि जब तक हम आप लोगों को दूसरी बस में न बैठा दें आप लोग नहीं उतरिएगा और यदि कोई दूसरी बस नहीं मिली तो हम आपको इसी बस से हरिद्वार पहुंचाएंगे। 

श्रीनगर से चलने के बाद बस चलती रही पहली बार देवप्रयोग में कुछ देर रुकी और फिर वहां से ऋषिकेश के लिए चल पड़ी। इस बार हमारे साथ बात ऐसी हुई कि हमें खिड़की वाली सीट नहीं मिल पाई तो हम फोटो खीच पाने में असमर्थ हो गए और अगर कहीं बस रुकती तो फोटो खींचने की कोशिश करते वरना आंखें बंद किए हुए हसीन सपने में खोए रहते। देवप्रयाग से बस के चलने के बाद हमें एक जगह पहाड़ों का बहुत ही सुंदर व्यू नजर आया तो हमने कुछ फोटो लेने की कोशिश की और जहां से फोटो ले रहे थे वहां दो लड़कियां बैठी हुई थी। मेरे फोटो लेने पर वो दोनों ऐसे देख रही थी कि जैसे मैं उनकी फोटो ले रहा हूं। उनके घूरने के अंदाज से हम ये समझ गए थे कि हो न हो ये जरूर मुझे टोकेगी तो उसके टोकने से पहले हमने उसको बता दिया कि आप चिंता न करें हम आपकी फोटो नहीं ले रहे हैं। इसके बाद कुछ फोटो लेने के बाद हम भी आराम से बैठ गए क्योंकि वैसे भी अंधेरा होने वाला था और अंधेरे में फोटो तो ले नहीं सकता था। बस चली जा रही थी और इसी तरह हम ब्यासी पहुंच गए। ब्यासी से ऋषिकेश की तरफ बढ़ने पर कुछ किलोमीटर ही चले होंगे कि एक जगह भू-स्खलन के कारण पहाड़ का मलबा सड़क पर आ जाने से कुछ देर बस वहीं खड़ी रही। मलबा हटाने में करीब दस मिनट का समय लगा और फिर सभी गाडि़यां आगे बढ़ने लगी। श्रीनगर से हम 4ः15 बजे चले थे और तीन घंटे के सफर के बाद ठीक 7ः15 बजे हम ऋषिकेश पहुंच गए।

ऋषिकेश पहुंचते ही बस वाले ने हमें हरिद्वार जाने वाली एक बस में बैठा दिया तो जो कुछ देर बाद 8ः00 बजे ऋषिकेश से चली और एक घंटे के सफर के बाद 9ः00 बजे हरिद्वार पहुंच गई। हरिद्वार में गाड़ी से उतरते ही सबसे पहले हम लोगों ने खाना खाया। खाना खाने के बाद हम सब सीधे रेलवे स्टेशन गए। अब तक रात के 10ः00 बज चुके थे। स्टेशन पर पहुंचने के बाद राकेश जी और धीरज जी ने हरकी पैड़ी जाने का विचार किया तो हम भी उनके साथ हो लिए और वहां से घूम कर करीब 11ः00 बजे हरकी पैड़ी से वापस स्टेशन आ गए। अब यहां से हमारेे पांच और साथियों के अलग होने का समय आ गया। हमारे पांचों साथी जो पटना से आए थे उनकी ट्रेन रात में 11ः50 बजे थी। गाड़ी चलने में अब केवल 50 मिनट बाकी रह गया था तो उन लोगों ने यहां न बैठकर अब गाड़ी में जाकर बैठना ही उचित समझा। हम भी उनके साथ प्लेटफाॅर्म पर गए और सबको गाड़ी में बैठाकर दुबारा जल्द मिलने का वायदा करके अलविदा कहा और उसके बाद हम स्टेशन से बाहर घूमने के लिए निकल गए क्योंकि हमारी ट्रेन 12ः50 बजे थी और घड़ी के हिसाब से अभी करीब डेढ़ घंटे का समय बाकी था। थोड़ा बाजार घूमने के पश्चात हम ठीक साढ़े बारह बजे स्टेशन आ गए और कुछ ही देर में गाड़ी भी आ गई। गाड़ी रुकते ही हम ट्रेन के अंदर दाखिल हुए। हमारा सबसे ऊपर वाला बर्थ था जहां पहले से एक व्यक्ति सोए हुए थे। जगाने पर उन्होंने कहा कि आप नीचे सो जाइए। हमने सामान रखा और गाड़ी खुलने से पहले ही अपनी बर्थ पर हाथ-पांव फैला लिया। बर्थ पर लेटते ही कब नींद आ गई कुछ पता नहीं चला।

हरिद्वार में सोए तो एक ही बार दिल्ली आकर ही नींद खुली। ठीक 4ः45 बजे हम नई दिल्ली पहुंच गए। ट्रेन से उतरे और एक आॅटो किया और घर की तरफ रवाना हो गए और साढ़े पांच बजते-बजते हम अपने घर पहुंच गए। इस तरह से हमारे चार रात और तीन दिन का एक रोमांचक सफर पूरा हुआ जो अब तक के हमारे घुमक्कड़ी जीवन की सबसे रोमांचक यात्रा रही। अब हम आपसे विदा लेते हैं और जल्दी ही मिलते हैं एक और यात्रा के साथ। उस यात्रा में हम आपको उज्जैन, इंदौर, ओंकारेश्वर और देवास की यात्रा पर ले चलेंगे।

तब तक के लिए आज्ञा दीजिए।
आपका अभ्यानन्द सिन्हा

इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली





आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :


चोपता का जो बाजार कल गुलजार था वही आज सुनसान और चुपचाप किसी की राह देख रहा है


चोपता में रास्ता बताने वाला बोर्ड


बहुत सही जगह बैठे हैं


चोपता के ऊपर मंडराते बादल


चोपता में एक होटल में आसपास के स्थलों को दर्शाता मानचित्र


चोपता में एक होटल में आसपास के स्थलों को दर्शाता मानचित्र


चोपता से आने पर बाएं मुड़ने पर मक्कू और दाएं मुड़ने पर उखीमठ


चोपता और उखीमठ के बीच कहीं


उखीमठ से दिखाई देता मंदाकिनी नदी


एक झरना


सड़क पर गिरता झरना


उखीमठ से दिखाई देता गुप्तकाशी


उखीमठ से दिखाई देता गुप्तकाशी


गुप्तकाशी की तरफ उखीमठ से दिखाई देता झरना


गुप्तकाशी की तरफ उखीमठ से दिखाई देता झरना


सड़क पर गिरता झरना और गुजरती हुई गाड़ी


एक और झरना


मक्कू और अगस्त्यमुनि के बीच 


मक्कू और अगस्त्यमुनि के बीच 


देवप्रयाग में विभिन्न स्थानों की दूरी को दर्शाने वाला बोर्ड


देवप्रयाग और ब्यासी के बीच कहीं


देवप्रयाग और ब्यासी के बीच कहीं


ब्यासी और ऋषिकेश के बीच सड़क से मलबा हटाने का कार्य


हरिद्वार स्टेशन के बाहर लगी भोलेनाथ की प्रतिमा

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भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
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21 comments:

  1. आपकी यह यात्रा एक बार में ही पूरी पढ डाली गयी है।

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    1. आपका बहुत बहुत सादर धन्यवाद भाई जी!!!! आपने अपना समय दिया और मेरे आलेख को पढ़कर मेरा मनोबल बढ़ाया।

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  2. चलिए एक ओर रोमांचक यात्रा पूर्ण हुई

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस पूरी यात्रा को पढ़ने के लिए। जी भाई जी ये पूरी यात्रा इतनी रोमांचक होगी इसकी उम्मीद मुझे नहीं थी। घर से निकलने से वापस आने तक पूरा ही रोमांच बना रहा। एक बार पुनः धन्यवाद साथ-साथ चलने के लिए।

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  3. आखिरकार हमारी आशंका थोड़ी ही सही सच ही थी, आप बहुत ही सौभाग्यशाली है जो सकुशल निकल पाए। ऐसे ही ब्लाॅक होने पर हमे दो दिन चिन्यौलीसौड़ के प्राथमिक विद्यालय में गुजारना पड़ा, बिना किसी सुविधा के।
    आपकी यात्रा मंगलमय रही और अंततः सब कुछ अपने नियत समय पर हो गया, बाबा तुंगनाथ की कृपा रहीं। अभी ऐसी कृपा हमने भी साक्षात देखी, आप भी साक्षी रहे की कैसे विभिन्न बाधाओं के बाद भी बाबा तुंगनाथ ने अपने पास बुला ही लिया।
    अंत भला तो सब भला, बारिश के मौसम में हरियाली निखर कर सामने आ रही है। ऐसा सौंदर्य तो दूर्लभ ही है। एक बार ऐसा भी देखने की इच्छा है।
    आपकी अगली यात्रा के लिए शुभकामनाएँ ।💐💐💐
    ।। इति शुभम् ।।🙏🙏

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    1. जी हां हम बहुत ही सौभाग्यशाली रहे, बहुत बड़ा जोखिम लिया था इस मौसम में में तुंगनाथ की यात्राा करने का महादेव की कृपा से सब कुछ सकुशल निपट गया। अगर रास्ते बंद हो जाते तो परेशानियों सिर पर आ पड़ती पर ऐसा होने से हम बच गए। जी इस यात्राा में महादेव ने अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखा। जी ये बात भी सही है आपने खुद इन चीजों को साक्षात् देख ही लिया जी कि कैसे आप तुंगनाथ पहुंचे और कुछ लोग सोते रह गए और कुछ लोग जगाने पर भी ठण्ड के कारण हिम्मत नहीं कर सके। पर जो खूबसूरती मुझे अगस्त में देखने के लिए मिली वो इस मौसम में नहीं मिली। जरूर देखिए एक बार बरसात की खूबसूरती अगले साल अगस्त में चलेंगे बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए, इच्छा हो तो बताइगा।
      हर हर महादेव, जय भोलेनाथ।

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  4. शानदार यात्रा वृतांत, बात तो सही है घर से निकलते वक्त काफी रोमांच और उत्साह रहता है पर आते वक्त जरा सा दुःख इस बात का रहता है कि ये नज़ारे जो हम देख कर आ रहे है पता नही अब कितने दिनों बाद देखने को मिले,एक भावनात्मक लगाव से हो जाता है,वैसे झरने वाला ये तस्वीर कुंड से उखीमठ के रास्ते मे पड़ता है शायद.

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    1. बहुत सारा धन्यवाद जी, यात्रा में घर से निकलते वक्त बहुत रोमांच रहता है और वापसी में वो रोमांच नहीं रह पाता। पर हमारी इस यात्राा में घर से निकलने से लेकर घर वापसी तक जो रोमांच रहा एक पल के लिए कम नहीं हुआ जी!!!
      किसी जगह पर जाने से उस जगह से भावनात्मक लगाव तो बन ही जाता है जी!!!

      हां ये झरने वाली तस्वीर उखीमठ और कुण्ड के बीच में है।

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  5. वाह राँसी मिलन में चले जाने से आपकी यात्रा का अंत नही पढ़ पाया.... करीब 20 मिनट तक GDS fb में नीचे जाकर आपकी पोस्ट ढूंढ कर पढ़ डाली.. अंत मे मजा आ गया...राँसी मिलन में भी आप नंदादेवी से गये और इस यात्रा में भी और बीरेंद्र भाई भी दोनो बार वही ट्रैन में...एक और बात notice की की आजकल बस वालो जीप वालो से बहुत भीड़ जाते है...रोमांचक यात्रा की समाप्ति पर बहुत बहुत बधाई..अब इंतज़ार है GDS मिलन के ब्लॉग का

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    1. तब न सही अब तो आपने पढ़ ही लिया। और वैसे एक बात ये कि आपको 20 मिनट खोजने की मेहनत की क्या जरूरत थी, जब हम आपके साथ 24 घंटे हैं तो फिर से लिंक मांग लेते और मेरे सभी फोटो पर ब्लाॅग का लिंग है। हां वही ट्रेन सबसे परफेक्ट बैठती है चार घंटे का सफर और पहुंच गए गंतव्य पर। बीरेंद्र जी भी दोनों बार उसी ट्रेन से और उनका साथ दोनों बार हरिद्वार से हरिद्वार तक रहा। जीप और बस वालों की हरकतें ही ऐसी होती है कि उनसे उलझना मजबूरी होता है। रांसी मिलन में भी बस के कंडक्टर से उलझा था, आपने देखा होगा जब उसने दो अनजान लोगों को बस में अपना आदमी कहकर बैठा रहा था। अब अगली यात्राओं का ब्लाॅग जल्द ही सबके लिए।

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  6. शानदार भाई ऐसा लगा यात्रा में हम भी आपके साथ शामिल हे
    आप ऐसे ही लिख ते रहे और हमे नयी नयी जानकारिय से अवगत कराते रहिये गा।👌👌


    ।।हर हर महादेव।।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अज्ञात व्यक्ति जी,
      हां आप अपना स्नेह बनाए रखिएगा, हम लिखते रहेंगे। आप सबके मनोबल बढ़ाने से ही तो लिखने की प्रेरणा मिलती है।
      हर हर महादेव, जय भोलेनाथ!!!!

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  7. अभयानंद भाई, आपके इस पूरे यात्रा वृतांत को एक बार में ही पढ़ा और वाक़ई आनंद आ गया. पहाड़ों से मेरा बड़ा गहरा लगाव है लेकिन समस्या यह है कि बसों में 2 घंटे से ज़्यादा यात्रा करने पर मुझे मोशन सिकनेस हो जाती है और पहाड़ी सड़कों में ड्राइविंग करने लायक अभी पूरा आत्मविश्वास नहीं है. लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही इन जगहों पर जा पाएँगे. धन्यवाद पूरी जानकारी देने के लिए.

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    1. धन्यवाद सतीश भाई मेरे वृत्तांत को पढ़ने के लिए। पहाड़ों से तो सबका लगाव होता है और एक बार जो हिमालय की इन बर्फीली वादियों को देख ले फिर उसके बाद वो हिमालय का ही हो जाता है। पहाड़ी रास्तों पर बस में सफर करने पर सबके साथ ऐसा होता है पर केवल पहले ही दिन दूसरे दिन से आप सामान्य रहेंगे। मेरी भी वही हालत है मैं दिल्ली से बाहर कभी बाइक चलाया ही नहीं। पर इस बार नव वर्ष पर दिल्ली से बाहर जाने का लुत्फ उठाउंगा अपनी बाइक से।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका। हां जी ये मेरी खुद की क्लेक्शन है, फोटो भी मेरा और राइटअप भी मेरा।

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  9. बहुत अच्छा लिखा है सर. आज का पूरा दिन आपकी इस यात्रा के सहारे कट गया. शानदार.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको जो आपने अपना कीमती समय देकर हमारे लिखे को पढ़ा।

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  11. बहुत सुंदर चित्रण अभय जी, एक ही बार मे 3 घंटे में अपने गजब की यात्रा करवाई

    बहुत बहुत धन्यवाद ओर शुभकामनाएं

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    1. बहुत सारा धन्यवाद चंद्रशेखर जी। आपने अपना समय देकर लेख को पढ़ा और अपनी टिप्पणी से इसको शोभायमान किया।

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